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________________ अगल (ई. सन् १९८९)का 'चन्द्रप्रभपुराण', आञ्चष्ण (ई० सन् १९९५) का वद्धमानपुराण, बन्धुवर्मा (ई० सन् १२००) का हरिवंशपुराण, पाश्र्वपशित (ई० सन् १२०५)का पार्श्वनाथपुराण, कमलभव (ई० सन् १२३५)का शान्तिस्वरपुराण, मधुर (ई. सन् १३८५)का धर्मनाथपुराण, शान्तिकोति (ई० सन् १५१९)का शान्तिनाथपुराण, दोड्डेय्य (ई० सन् १५५०)का चन्द्रप्रभपुराण, कुमुवेन्दु (ई० सन् १२७५)का रामायण, भास्कर (ई. सन् १४२४ का जीवन्धरचरित, कल्याणकीति (ई० सन् १४२९)का ज्ञानचन्द्राभ्युदय, घोम्मरस (ई० सन् १४८५) का सनत्कुमारचरित, कोटेश्वर (ई० सन् १५००) का जीवन्धरषटपादि पद्यनाम (ई. सन् १५८०)का रामपुराण, चन्द्रम (ई० सन् १६०५)का गोमटेश्वरचरित और बाहुवली (ई० सन् १५६०)का नागकुमारचरित, भट्टाकलंक (ई० सन् १६०४)का शब्दानुशासन, नृपतुंग (ई० सन् ८१४)का कविराजमार्ग, उदयाक्त्यि (ई. सन् ११५०)का उदयादित्यालंकार, और साल्व (ई० सन् १५५०)के रसरत्नाकर आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध है। जैनवैद्यक ग्रन्थोंमें सोमनाथ (ई० सन् १९५०)का कल्याणकारक, मंगराज (ई० सन् १५५०)का खगेन्द्रमणिदर्पण, श्रीधरदेव (ई० सन् १५००)का वैद्यामत, साल्ब । ई० सन् १५५०)का वैद्यसांगत्य, देवेन्द्रमुनि (ई० सन् १२००)का बालग्रहचिकित्सा, कीर्तिवर्मा (ई० सन् ११२५)का गोवेद्यग्रन्थ उपलब्ध है। ज्योतिष में श्रीधराचार्य (ई. सन् १०४६)का जातकतिलक, शुभचन्द्र (ई० सन् १२००)का नरपिंगल और राजादित्य (ई० सन् ११२०)के व्यवहारगणित, क्षेत्रणित, व्यवहाररत्न लीलावतो, चित्रहंसुर्वे और जैनगणितटीकोदाहरण आदि प्रसिद्ध ग्रन्थ' हैं। ___ कर्नाटककविचरितेके सम्पादक नरसिंहाचार्य ने कन्नड़ जैन वाङमयका मल्यांकन करते हए लिखा-"जैन ही कन्नड़ भाषाके कवि हैं। आज तककी उपलब्ध सभी प्राचीन एवं श्रेष्ठ कृतियाँ जंन कवियोंकी ही हैं । अन्यरचनामें जैनोंके प्राबल्यका काल ही कन्नड़ साहित्यकी उन्नत स्थितिका काल मानना होगा। प्राचीन जैन कवि ही कन्नड़ भाषाके सौन्दर्य एवं कान्तिके विशेषतः कारणभूत हैं। उन्होंने शुद्ध और गम्भीर शैलीमें अन्य रचकर ग्रन्थरचना कौशलको उन्नत स्तरपर पहुँचाया है । प्रारम्भिक कन्नड़ साहित्य उन्हींकी लेखनी द्वारा लिखा गया है। कन्नड़ साहित्यके अध्ययनकै सहायभूत छन्द, - -- -. १. कनड़ जनसाहित्य, आचार्य भिक्ष स्मति ग्रन्थ, जैन श्वेताम्बर तेरहपंथी महासभा, तीन पोर्चुगीज, पर्चस्ट्रीट, कलकत्ता १, द्वितीय खण्ड, पु. १२९-१३० । आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३११
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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