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कवि जब कन्नड़ साहित्यमें जन्न, रन्न, पोनको रत्नत्रय कहा जाता है । जन्मने ई० सन् ११७०से १२२५के बीच अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है। यह होयसल राजाओंका आस्थान कवि था। इसे कवि चक्रवत्तोंकी उपाधि प्राप्त यो । पम्पको तरह जन्न भी शूर-बीर और लेखनीके धनी हैं। उत्तरवर्ती कवियों ने इसकी मुक्त कण्ठसे प्रशंसा की है। इसके 'यशोधरचरित' और 'अनन्तनाथपुराण' प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
कर्णपार्य
ई० सन् ११४०के लगभग इन्होंने 'नेमिनाथपुराण'की रचना की है । इसमें समुद्र, पहाड़, नगर, सूर्योदय, चन्द्रोदय, वनक्रीड़ा, जलक्रीड़ा, रति, चिन्ता, विवाह, पुत्रोत्पत्ति, युद्ध, जयप्राप्ति इत्यादिका सविस्तार वर्णन आया है । विप्रलाभ श्रृङ्गारके वर्णनमें तो कविने अपूर्व क्षमता प्रकट की है।
नेमिचन्द्र 'अर्धनेमिपुराण'के रचयिता कवि नेमिचन्द्र भी १३वीं शताब्दीके कवियोंमें प्रमुख स्थान रखते हैं। इन्होंने संस्कृत मिश्रित कन्नडमें संस्कृत छन्द लेकर अपने काव्यकी रचना की है। 'चम्पकशालवृत्त में प्रायः समस्त ग्रन्थ लिखा गया है । अनुप्रासकी छटा तो इतनी अधिक दिखलाई पड़ती है, जिससे इसके समक्ष कन्नड़का अन्य कोई कवि नहीं ठहर सकता है।
गुणवर्म गुणवर्मका समय ई० सन् १२२५के लगभग है । इस कविने 'पुष्पदन्तपुराण'की रचना की है। यह ग्रन्थ इतिवृत्तात्मक होते हुए भी मर्मस्पर्शी सन्दसि युक्त, है । कविने अपना भाषा विषयक पाण्डित्य तो दिखलाया ही है, साथ ही वर्णनात्मक शैलीका अद्भुत रूप भी प्रदर्शित किया है ।
रत्नाकर वर्णी आध्यात्मिक साहित्यके निर्माताओंमें कवि रत्नाकर वर्णीका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने भरतेशबैभव, रत्नाकर शतक, अपराजितशतक, आदि ग्रन्योंकी रचना की है। भरतेशवंभवका माधुर्य, तो संस्कृतके गीत गोविन्दसे भो
माचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३०९