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________________ इनकी जाति खरीचा थी । इन्होंने भिण्डनगरमें रहकर सं० १८१३ में 'चारचरित' की रचना की थी। सप्तव्यसनचरित, दानकथा, शीलकथा और रात्रिभोजनकथा भी इनके छन्दोबद्ध ग्रन्थ हैं । नखतराम कवि बखतराम जयपुर लश्करके निवासी थे । इनके चार पुत्र थे - जीवनराम, सेवाराम, खुशालचन्द और गुमानीराम । इनका समय १९वीं शताब्दीका द्वितीय पाद है । इन्होंने मिथ्यात्वखण्डन और बुद्धिविलास नामक दो ग्रन्थ लिखे हैं । बुद्धिविलासके आरम्भमें कविने जयपुर के राजवंशका इतिहास लिखा है । सं० १९९१ में मुसलमानोंने जयपुर में राज्य किया । इसके पूर्वके कई हिन्दू राजवंशोंको नामावली दी है। इस ग्रन्थका वर्ण्यविषय विविध धार्मिक विषय, संघ, दिगम्बर पट्टावली, भट्टारकों तथा खण्डेलवाल जाति की उत्पत्ति आदि है । इस ग्रन्थकी समाप्ति कविवरने मार्गशीर्षशुक्ला द्वादशी सं० १८२७ में की है । टेकचंद हिन्दी वचनिकाकारों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। टीकाकार होनेके साथ ये कवि भी हैं । कथाकोशछन्दोबद्ध, बुधप्रकाशछन्दोबद्ध तथा कई पूजाएँ पद्यबद्ध हैं। वचनिकाओं में तस्वार्थकी श्रुतसागरी टीकाकी वचनिका, सं० १८३७ में और सुदृष्टि तरंगिणीकी वचनिका सं० १८३८ में लिखी है। 'पटपाहुड' की वचनिका भी इनकी उपलब्ध है । पण्डित जगमोहनदास और पण्डित परमेष्ठी सहाय आरानिवासी पण्डित परमेष्ठी सहाय और पण्डित जगमोहनदासको हिन्दी जैनसाहित्य के इतिहास से पृथक नहीं किया जा सकता है। श्री पण्डित परमेष्ठी सहायने 'अर्थप्रकाशिका' नामक एक टीका जगमोहनदासकी तत्त्वार्थविषयक जिज्ञासाकी शान्ति के लिए लिखी है । इस ग्रन्थको प्रशस्ति में बताया है पूरन इक गंगातट धाम, अति सुन्दर आरा तिस नाम । तामें जिन चैत्यालय लसें अग्रवाल जैनी बहु बसे || बहु ज्ञाता जिनके जु राय, नाम तासु परमेष्ठी सहाय 1 जैनग्रन्थ रुचि बहु केरे, मिध्या घरम न चित्तमें घेरे || प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि पण्डित परमेष्ठी सहायके पिताका नाम कीर्तिचन्द्र था। उन्हीं के पास इन्होंने आगमशास्त्रका अध्ययन किया था तथा अपनी कृति आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३०५ २०
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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