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________________ अर्थ प्रकाशिकाको जयपुर निवासी प्रसिद्ध वचनकार पण्डित सदासुखजीके पास संशोधनाथं भेजी थी । पण्डित जगमोहनदास भी अच्छे कवि हैं। इनकी कविताओंका एक संग्रह 'धर्मरत्नोद्योत' नाम से स्व० पण्डित पन्नालालजी वकिलीचालके सम्पादकत्वमें प्रकाशित हो चुका है । पण्डित सदासुखजी के समकालीन होनेसे कविका जन्म सं० १८६५ के लगभग है । मनरंगलाल मनरंगलाल कन्नौज के निवासी थे, जातिके पल्लीवाल थे। इनके पिताका नाम कनोजीलाल और माताका नाम देवको था। कन्नोज में गोपालदासजी नामक एक धर्मात्मा सज्जन निवास करते थे। इनके अनुरोधसे ही कविने चौसी पाठकी रचना की है । इस प्रसिद्ध पाठका रचनाकाल वि० सं० १८५७ है । इसके अतिरिक्त इनके निम्नलिखित ग्रंथ भी उपलब्ध हैं— नेमिचन्दिका, सप्तव्यसन चरित, सप्तऋषिपूजा एवं शिखिर सम्मेदाचल माहात्म्य | शिखिर सम्मेदाचल माहात्म्यका रचनाकाल वि० सं० १८८९ है । माधवपुर राज निवासी पण्डित डालूराम, आगरा निवासी पण्डित भूघर मिश्र भी अच्छे कवि हैं । डालूरामने गुरुपदेश श्रावकाचार और सम्यक्त्व प्रकाश तथा भूधर मिश्र ने पुरुषार्थसिद्धयुपायपर विशद टोका लिखी है । उपर्युक्त कवियोंके अतिरिक्त आदिकालमें भी कुछ जैन कवियोंने काव्य ग्रन्थोंकी रचना की है । कवि सधारूका प्रद्युम्नचरित और कवि राजसिंहका जिनदत्तचरित प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । राजसिंहका अपरनाम ल्ह भी बताया गया है । जिनदत्तचरितको प्रशस्ति में लिखा है कि रल्ह कविने इस काव्यको वि० सं० १३५४ भाद्रपद शुक्ला पंचमो गुरुवार के दिन समाप्त किया। उन दिनों भारतपर अल्लाउद्दीन खिलजी शासन कर रहा था। इस प्रकार वि० सं० की १४वीं १५वीं शती में भी जैन कवियों द्वारा अनेक रचनाएं प्रस्तुत की गयी हैं । कनड़ जैन कवि दक्षिण भारत में कन्नड़, तमिल, तेलगू, मलयालम एवं तुलु ये पाँच भाषाएँ प्रचलित हैं। इनमें से कन्नड़ और तमिल भाषा में पर्याप्त जैन साहित्य लिखा गया है । कन्नड़ साहित्य में गम्भीर चिन्तन, समुन्नत हार्दिक विचार एवं हृदय ३०६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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