________________
सुन्दर इनके बड़े भाई थे । पहले ये साँभरमें रहते थे, फिर बूंदीमें आकर रहने लगे । कविके समय में रावभावसिंहका राज्य था । इन्होंने बूंदीनगर एवं वहाँके राजवंशका वर्णन किया है । इन्होंने यशोधरचरितका पद्यानुवाद वि० सं० १७२१ में समाप्त किया है ।
लक्ष्मीदास
पण्डित लक्ष्मीदास भट्टारक देवेन्द्रकीर्तिके शिष्य थे । सांगानेरके रहनेवाले थे। इन दिनों महाराज जयसिंहका राज्य था । इन्होंने यशोधरचरितकी रचना भट्टारक सकलकीर्ति और पद्मनामकी रचना के आधारपर की है । यशोघरचरित वि० सं० १७८१ में पूर्ण हुआ है ।
गरकर कमल
हिन्दी जैन गद्यलेखकों में सबसे प्राचीन गद्यलेखक राजमल्ल हैं । इन्होंने वि० सं० १६०० के आस-पास समयसारकी हिन्दी टोका लिखी है | महाकवि बनारसीदासने इन्हींको टीकाके आधारपर 'नाटक समयसार की रचना की है।
पाण्डे जिनदास
ब्रह्म शान्तिदासके पास इन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी । ये मथुराके रहनेवाले थे । यहीं रहते हुए वि० सं० १६४२ में 'जम्बूस्वामीचरित' की रचना की है । इनकी अन्य रचना 'जोगीरासो' भी बतायी जाती है ।
ब्रह्म गुलाल
ये पद्मावती पुरवाल जाति के थे और चन्दवार के पास टापू नामक ग्रामके निवासी ये । इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ 'कूपणजगावनचरित' है । इस ग्रन्थकी प्रशस्तिसे अवगत होता है कि कविवर ब्रह्म गुलालजी भट्टारक जगभूषण के शिष्य थे । उस समय टापू गाँव के राजा कीरतसिंह थे । यहींपर घरमदासजीके कुलमें मथुरा मल्ल हुए थे। इन्हीं मथुरामल्लके उपदेशसे सगुणमार्गका निरूपण करनेके लिए सं० १६७१ में इस ग्रन्थको रचना की है । कविकी एक अन्य कृतिके 'अपनकिया' भी उपलब्ध है, जो वि० सं० १६५५ में लिखी गयी है ।
भारामल
कवि भारामल फर्रुखाबादके निवासी सिंघई परशुरामके पुत्र
३०४ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
थे और