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________________ हुए हैं। इनकी गुरु परम्परामें देवेन्द्रकीति, विद्यानन्दि, मल्लिभूषण, लक्ष्मी चन्द्र, वीरचन्द्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचन्द्र, वादिचन्द्र और महोचन्द्र के नाम आये हैं। महीचन्द्र के पश्चात् मेरुचन्द्र भट्टारक पदपर आसीन हुए हैं। ये ब्रह्म जयसागर के गुरुभाई थे । मेरुचन्द्रका समय वि० सं० १७२२-१७३२ सिद्ध है । ब्रह्म जयसागर की तीन रचनाएं उपलब्ध हैं १. सीताहरण २. अनिरुद्धहरण ३. सगरचरित खुशालचंद काला यह कवि देहली निवासी थे। कभी-कभी ये सांगानेर भी आकर रहा करते थे। इनके पिताका नाम सुन्दर और माताका नाम अभिवा था । इन्होंने भट्टारक लक्ष्मीका के पास विद्याध्ययन किया था। इनकी निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं- १. हरिवंशपुराण (सं० १७८० ) २. पद्मपुराण (सं० १७८५) ३. धन्यकुमारचरित ४. जम्बूचरित ५. व्रतकथाकोश शिरोमणिदास यह कवि पण्डित गंगादासके शिष्य थे । भट्टारक सकलकोर्तिके उपदेश से सं० १६३२ में धर्मसार नामक दोहा चौपाईबद्ध ग्रन्थ सिड्रोन नगरमें रचा है । इस नगर के शासक उस समय राजा देवीसिंह थे। इस ग्रन्थ में कुल ७५५ दोहा चोपाई है। रचना स्वस्थ है, किसीका अनुवाद नहीं । जोधराज गोदीका ये सांगानेर के निवासी हैं। इनके पिताका नाम अमरराज था। हरिनाम मिश्र के पास रहकर इन्होंने प्रीतिकरचरित कथाकोश, घर्मसरोवर, सम्यक्त्वकौमुदी, प्रवचनसार, भावदीपिका आदि रचनाएँ लिखी है। 1 लोहट कवि लोहटके पिताका नाम धर्म था । ये बघेरवाल जाति के थे। हींग और आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३०३
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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