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________________ निशदिन श्रीजिन मोहि अधार ॥ टेक ॥ जिनके चरन-कमलके सेवत, संकट कटत अपार ॥ निशदिन० || जिनको वचन सुधारस-गर्भित, मेटल कुमति बिकार ॥ निशदिन० ॥ भव आताप बुझावत को है, महामेघ जलधार || निशदिन० || जिनको भगति सहित नित सुरपत, पूजत अष्ट प्रकार || निशदिन० || जिनको विरद वेद विद सदा दुःख हतार | निरादि॥ भविक वृन्दकी विधा निवारो, अपनी ओर निहार ॥ निशदिन० ॥ C X X X X धन धन श्री दीनदयाल || टेक० ॥ परम दिगम्बर सेवाधारी, जगजीवन प्रतिपाल । मूल अठाइस चौरासी लख, उत्तर गुण मनिभाल | धन० ॥ महाकवि वृन्दावनदासके चौबीसी पाठसे हर व्यक्ति परिचित है । आज उत्तर भारत में ही नहीं दक्षिण भारतमें भी इस पाठका पूरा प्रचार है । निश्चयतः कवि वृन्दावनदास जन सामान्य के कवि हैं | हिन्दीके अन्य चर्चित कवि हिन्दी में शताधिक छोटे-बड़े कवि हुए है। हमने पूर्व में प्रसिद्ध कवियोंका ही इतिवृत्त उपस्थित किया है। इनके अतिरिक्त लब्धप्रतिष्ठ अनेक कवि और लेखक भी विद्यमान हैं, पर उनके सम्बन्ध में विस्तृत परिचय देनेका अवसर नहीं है । अतएव संक्षेप में हिन्दी के कुछ कवि और लेखकों के सम्बन्ध में इतिवृत्त उपस्थित किया जाता है | जयसागर जयसागर नामके दिगम्बर सम्प्रदाय में दो कवि हुए हैं । एक काष्ठा संघके नन्दी तटके गच्छसे सम्बन्धित हैं । इनकी गुरुपरम्परा में सोमकीत्ति, विजयसेन यशः कोति, उदयसेन, त्रिभुवनकीति और रत्नभूषण के नाम आये हैं। रत्नभूषण ही जयसागर के गुरु हैं। इनका समय वि० सं० १६७४ है । जयसागर हिन्दी और संस्कृत दोनोंही भाषाओंमें काव्यरचना करते थे । संस्कृतमें इनकी पापञ्चकल्याणक और हिन्दीमें ज्येष्ठजिनवरपूजा, विमलपुराण, रत्नभूषणस्तुति और तीर्थं जयमाला नामकी रचनाएँ हैं । दूसरे जयसागर ब्रह्म जयसागर हैं। इनका समय वि० सं० की १८वीं शतीका प्रथम पाद है । ये मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगणकी सूरत शाखामें ३०२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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