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________________ चारकी प्रार्थना करता था । साहबके अनुरोध से वृन्दावनने पुनः " हे दीनबन्धु करुणानिधानजी" विनती उन्हें सुनायी और उसका अर्थ भी समझाया । साहब बहुत प्रसन्न हुआ मोर इस घटनाके तीन दिन बाद ही कारागृह से उन्हें मुक्त कर दिया गया । तभीसे उक्त विनती संकटमोचन स्तोत्रके नामसे प्रसिद्ध हो गयी है। इनके कारागृहकी घटनाका समर्थन इनकी निम्नलिखित कवितासे भी होता है "श्रीपति मोहि जान जन अपनो, हरो विघन दुख दारिद जेल ।" कहा जाता है कि राजघाटपर फुटही कोठी में एक गार्डन साहब सौदागर रहते थे । इनकी बड़ी भारी दुकान थी। कविने कुछ दिनों तक इस दुकानकी मैनेजरीका कार्य भी किया था। यह अनवरत कविता रचनेमें लोन रहते थे । जब ये जिन मन्दिर में दर्शन करने जाते, तो प्रतिदिन एक विनती या स्तुति रचकर भगवान के दर्शन करते । इनके साथ देवीदास नामक व्यक्ति रहते थे । इन्हें पद्मावती देवीका इष्ट था । यह शरीरसे बड़े बली थे ! बड़े-बड़े पहलवान भी इनसे भयभीत रहते थे । इनके जीवन में अनेक चमत्कारी घटनाएं घटी हैं । इनके दो पुत्र थे - अजितदास और शिखरचन्द अजितदासका विवाह आरामें बाबू मुन्नीलालजी की सुपुत्री से हुआ था । अतः अजितदास आरामें हो आकर बस गये थे । यह भी पिता के समान कवि थे । afa वृन्दावनकी निम्नलिखित रचनाएं प्राप्त है — १. प्रवचनसार २. तीस चौबीसी पाठ ३. चौबीसी पाठ ४. छन्द शतक ५. अर्हत्याशा केली ६. वृन्दावनविलास कवि वृन्दावन की रचनाओं में भक्तिकी ऊंची भावना, धार्मिक सजगता और आत्मनिवेदन विद्यमान है | आत्मपरितोषके साथ लोकहित सम्पन्न करना ही इनके काव्यका उद्देश्य है । भक्ति विह्वलता और विनम्र आत्म समर्पणके कारण अभिव्यञ्जना शक्ति सबल है । सुकुमार भावनायें, लयात्मक संगीतके साथ प्रस्फुटित हो पाठकके हृदय में अपूर्व आशाका संचार करती है ! कवि जिनेन्द्रकी आराधना करता हुआ कहता है आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३०१
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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