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वृन्दावनकी माताका नाम सिताबी और स्त्रीका नाम रुक्मिणि था । इनकी पत्नी बड़ी धर्मात्मा और पतिव्रता थी। इनकी ससुराल भी काशीके ठठेरी बाजारमें थी। इनके श्वसुर एक बड़े भारी धनिक थे। इनके यहाँ उस समय टकसालाका काम होता था। एक दिन एक किरानी अंग्रेज इनके श्वसुरकी टकसाला देखने आया । वृन्दावन भी सव वहीं स्पस्थित थे। उस my किरानी अंग्रेजने इनके श्वसुरसे कहा-"हम तुम्हारा कारखाना देखना चाहते हैं कि उसमें कैसे सिक्के तैयार होते हैं ।" वृन्दावनने उस अंग्रेज किरानीको फटकार दिया और उसे टकसाला नहीं दिखलायो । वह अंग्रेज नाराज होता हुआ वहाँसे चला गया। ___संयोगसे कुछ दिनोंके उपरान्त वही अंग्रेज किरानी काशीका कलक्टर होकर आया। उस समय वृन्दावन सरकारी खजांचोके पदपर आसीन थे । साहब बहादुरने प्रथम साक्षात्कारके अनन्तर ही इन्हें पहचान लिया और मनमें बदला लेनेकी बलवती भावना जागत हई। यद्यपि कविवर अपना काम ईमानदारी, सच्चाई और कुशलतासे सम्पन्न करते थे, पर जब अफसर ही विरोधी बन जाये तब कितने दिनों तक कोई बच सकता है। आखिरकार एक जाल बनाकर साहबने इन्हें तीन वर्षको जेलको सजा दे दी और इन्होंने शान्ति पूर्वक उस अंग्रेजके अत्याचारोंको सहा ।
कुछ दिनके उपरान्त एक दिन प्रातःकाल ही कलक्टर साहब जेलका निरीक्षण करने गये । वहां उन्होंने कविको जेलकी एक कोठरीमें पप्रासन लगाये निम्न स्तुति पढ़ते हुए देखा
हे दीनबन्धु श्रीपति करुणानिधानजी,
अब मेरी व्यथा क्यों न हरो बार क्या लगी। इस स्तुतिको बनाते जाते थे और भैरवीमें गाते जाते थे । कविता करनेको इनमें अपूर्व शक्ति थी। जिनेन्द्रदेवके ध्यानमें मग्न होकर धारा प्रवाह कविता कर सकते थे । इनके साथ दो लेखक रहते थे, जो इनकी कविताएं लिपिबद्ध किया करते थे, परन्तु जेलकी कोठरीमें अकेले ही ध्यान मग्न होकर भगवानका चिन्तन करते हुए गाने में लोन थे। इनकी आँखोंसे आँसुओंकी धारा प्रवाहित हो रही थी। साहब बहुत देर तक इनकी इस दशाको देखता रहा । उसने 'खजांची बाबू' 'खजांची बाब' कहकर कई बार पुकारा, पर कविका ध्यान नहीं टूटा । निदान कलक्टर साहब अपने आफिसको लौट गये और थोड़ी देर में एक सिपाहीके द्वारा उनको बुलवाया और पूछा-"तुम क्या गाटा और रोटा था" ? वृन्दावनने उत्तर दिया-"अपने भगवान्से तुम्हारे अत्या३०० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा