________________
कतिपय दोहे तो तुलसी, कबीर और रहोमके दोहोंसे अनुप्राणित दिखलायी पड़ते हैं । विरागभावना खण्ड में कविने संसारको असारताका बहुत ही सुन्दर और सजीव चित्रण किया है। इस खण्डके सभी दोहे रोचक और मनोहर हैं । दृष्टान्तों द्वारा संसारकी वास्तविकताका चित्रण करने में कविको अपूर्व सफलता मिली है। वस्तुका चित्र नेत्रोंके सामने मूर्तिमान होकर उपस्थित होता हैको है सुत को है तिया, काको धन परिवार । आके मिले सरायमें, बिछुरेंगे निरधार ॥ आया सो नाहीं रह्या, दशरथ लछमन राम | तु कैसें रह जायगा, झूठ पापका धाम ॥
बुधजनका पदसंग्रह भी विभिन्न राग-रागनियोंसे युक्त है । इस संग्रहमें २४३ ।नीता, लयात्मक संवेदनशीलता और समाहित भावनाका पूरा अस्तित्व विद्यमान है। आत्मशोधन के प्रति जो जागरूकता इनमें है, वह बहुत कम कवियोंमें उपलब्ध है। इनकी विचारोंकी कल्पना और आत्मानुभूतिको प्रेरणा पाठकोंके समक्ष ऐसा सुन्दर चित्र उपस्थित करती है, जिससे पाठक आत्मानुभूति में लीन हुए बिना नहीं रह सकता
मैं देखा आतम रामा ॥ टेक ॥
-
रूप, फरस, रस, गंध तें न्यारा, दरस-ज्ञान-गुन धामा । नित्य निरंजन जाके नाहीं, क्रोध, लोभ-पद कामा । में देखा० ॥
X
X
X
X
भजन बिन यो ही जनम गमायो ।
पानी पै ल्या पाल न बांधी, फिर पीछे पछतायो || भजन | रामा-मोह भये दिन खोबत, आशापाश बंधायो ।
जप-तप संजम दान न दीन, मानुष जनम हरायो ॥ भजन० ॥
स्पष्ट है कि बुधजनकी भाषापर राजस्थानीका प्रभाव है । पदोंमें राजस्थानी प्रवाह और प्रभाव दोनों ही विद्यमान है ।
वृन्दावनदास
कवि वृन्दावनका जन्म शाहाबाद जिलेके वारा नामक गाँव में सं० १८४२ में 'हुआ था। ये गोयल गोत्रीय अग्रवाल थे । कविके वंशधर द्वारा छोड़कर काशी में आकर रहने लगे । कविके पिताका नाम धर्मचन्द्र था। बारह वर्षको अवस्था में वृन्दावन अपने पिताके साथ काशी आये थे। काशी में लोग बाबर शहीदकी गली में रहते थे ।
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : २९९