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________________ संगसाथी कोई नहीं तेर", एवं "मोसम कौन कुटिल खल कामी । तुम सम . कलिमल दलन न नामी" पदोंमें कविने अपनी भावनाओंका निविद्ध रूप प्रदर्शित किया है । इस प्रकार कवि भागचन्द अपने क्षेत्रके प्रसिद्ध कवि हैं। बुधजन इनका पूरा नाम वृद्धि चन्द था। ये जयपुरके निवासी और खण्डेलवाल जैन थे । इनका समय अनुमानतः १९वीं शताब्दीका मध्यभाग है । बधजन नीतिसाहित्य निर्माताके रूपमें प्रतिष्ठाप्राप्त हैं । इनकी रचनाओं में कई रचनाए नीतिसे सम्बन्धित हैं। ग्रन्थोंको रचना सं० १८७१ से १८९२ तक पायी जाती है। अभी तक इनको निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध है १. तत्त्वार्थबोध (वि० सं० १८७१) २. योगसार भाषा ३. पञ्चास्तिकाय (वि० सं० १८९१) ४, बुधजनसतसई (वि० सं०१८७९) ५. बुधजनविलास (वि० सं० १८९२) ६. पद संग्रह बुधजनसतसईमें देवानुरागशतक, सुभाषित नीति, उपदेशान्धकार ओर विराग भावना ये चार विभाग हैं और ६९५ दोहे हैं। बुधजनने दया, मित्र, विद्या, संतोष, धैर्य, कर्मफल, मद, समता, लोभ, धन, धनव्यय, बचन, धूत, मांस, मद्य, परनारीगमन, वेश्यागमन, शोक आदि विषयोंपर नीतिपरक उक्तियां लिखो हैं । इन उक्तियोंपर वसुनन्दि, हारीत, शुक्र, गुरु, पुत्रक आदि प्राचीन नीतिकारोंका पूर्णप्रभाव है। कविताको दृष्सेि बुधजनसतसईके दोहे उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितने नीतिको दृष्टिसे । कविने एक-एक दोहेमें जीवनको गतिशील बनानेवाले अमूल्य सन्देश भरे हैं । कवि कहता है एक चरन हूँ नित पढे, तो काटे अज्ञान | पनिहारीकी लेज सो, सहज करे पाषान ॥ महाराज महावृक्षकी, सुखदा शीतल छाय । सेवत फल भासे न तो, छाया तो रह जाय ॥ पर उपदेश करन निपुन, ते तो लखै अनेक । करे समिक बोले समिक, ते हजारमें एक 11 विपताको धन राखिये, धन दीजे रखि दार । आलम हितको छाड़िए, धन, दारा, परिवार । २९८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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