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________________ हैं, प्रतिदिन सामायिक करना तथा सांसारिक भोगोंको निस्सार समझना और साहित्यसेवा तथा सरस्वती अरावनको जीवनका प्रमुख तत्त्व मानना कविको विशेषताओं के अन्तर्गत है । कविको निम्नलिखित रचनाएं उपलब्ध होती है १. महावीराष्टक (संस्कृत) २. अमितगतिश्रावकाचार वचनिका ३. उपदेशसिद्धान्त रत्नमाला वचनिका ४. प्रमाणपरीक्षा वचनिका ५. नेमिनाथपुराण ६. ज्ञानसूर्योदय नाटक वचनका ७. पद संग्रह कवि भागचन्दकी प्रतिभाका परिचय उनके पदसाहित्यसे प्राप्त होता है । इनके पदों में तर्कविचार और चिन्तनको प्रधानता है। निम्नलिखित पदमें दार्शनिक तत्त्वोंका सुन्दर विश्लेषण हुआ है t जे दिन तुम विवेक बिन खोये ॥ टेक ॥ मोह वारुणी पी अनादि तें परपदमें चिर सोये । सुख करंड चिपिड आपपद, गुन अनन्त नहि जोये || जे दिन || होहि बहिर्मुख हानि राग रुख, कर्मबीज बहू बोये । तसु फल सुख-दुःख सामग्री लखि, चितमें हरषे रोये || जे दिन० ॥ धवल ध्यान शुचि सलिल पूरतें, आसव मल नहि धोये | परद्रव्यनिकी चाह न रोकी, विविध परिग्रह ढोये || जे दिन० ॥ अब निजमें निज जान नियत तहां, निज परिनाम समोये | यह शिव मारग समरस सागर, 'भागचंद' हित तो ये | जे दिन● ॥ विशुद्ध दार्शनिकके समान कविने तत्त्वार्थं श्रद्धानी और ज्ञानीकी प्रशंसा की है । यद्यपि वर्णनमें कविने रूपक, उत्प्रेक्षा अलंकारोंका आलम्बन लिया है, किन्तु शुष्क सैद्धान्तिकता रहनेसे भाव और रसकी कमी रह गयी है। ज्ञानी जीव किस प्रकार संसार में निर्भय होकर विचरण करता है तथा उन्हें अपना आचारव्यवहार किस प्रकार रखना चाहिये, इत्यादि विषयका विश्लेषण करनेवाले पदोंमें कविका चिन्तन विद्यमान है, पर भावुकता नहीं है। हां प्रार्थनापरक पदों में मूर्त-अमूर्तको आलम्बन लेकर कविने अपने अन्तर्जगतको अभिव्यक्ति अनूठे ढंगसे की है । कविके पदों में विराट कल्पना, अगाध दार्शनिकता और सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ हैं । "निज कारज काहे न सारे रे भूले प्रानी"; "जीव तू भ्रमत सदैव अकेला आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : २९७
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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