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१. भगवती आराधना वचनिका २. सूत्रजकी लघुचचनिका ३. अर्थं प्रकाशिकाका स्वतन्त्र ग्रन्थ ४. अकलंकाष्टक वचनिका
५. रत्नकरंड श्रावकाचार वचनिका ६. मृत्युमहोत्सव वचनिका
७. नित्यनियम पूजा
८. समयसार नाटकपर भाषा वचनिका ९. न्यायदीपिका चचनिका
१०. ऋषिमंडलपूजा वचनका
पण्डित सदा सुखजी की भाषा ढूँढारी होनेपर भी, पण्डित टोडरमलजी और पण्डित जयचन्दजीको अपेक्षा अधिक परिष्कृत और खड़ी बोलीके अधिक निकट है । भगवती आराधनाकी प्रशस्तिकी निम्नति हैं---
मेरा हित होनेको ओर, दोखे नाहि जगतमें ठौर । यातें भगवत शरण जु गही, मरण आराधन पार्क सही ॥ हे भगवति तेरे परसाद, मरणसमै मति होहु विषाद । पंच परमगुरु पदकरि ढोक, संयम सहित लहू परलोक !
पण्डित भागचन्द
१९वीं शताब्दीके अन्तिम पाद और २०वीं शताब्दी के प्रथम पादके प्रमुख विद्वानों में पण्डित भागचन्दजीको गणना है। ये संस्कृत और प्राकृत भाषा के ग्वालियर के अन्तर्गत ईसागढ़ के साथ हिन्दी भाषा भी मर्मज्ञ विद्वान थे निवासी थे। इनकी जाति ओसवाल और धर्म दिगम्बर जैन था | दर्शनशास्त्र के विशिष्ट अभ्यासी थे । संस्कृत और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में कविता करनेकी अपूर्व क्षमता थी । शास्त्रप्रवचन और तत्वचर्चा में इनको विशेष रस आता था । ये सोनागिरि क्षेत्रपर वार्षिक मेलेमें प्रतिवर्ष सम्मिलित होते थे और शास्त्रप्रवचन द्वारा जनताको लाभान्वित करते थे । कविका अन्तिम समय आधिक कठिनाईमें व्यतीत हुआ हैं। इनकी 'प्रमाणपरीक्षा' की टीकाका रचनाकाल सं० १९१३ है | अतः कविका समय २० वीं शताब्दीका प्रारम्भिक भाग है ।
afa द्वारा रचित पदोंसे उनके जीवन और व्यक्तित्वके सम्बन्धमें अनेक जानकारीकी बातें प्राप्त होती हैं। जिनभक्त होनेके साथ कवि आत्मसाधक भी
२९६ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा