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________________ उल्लेख किया है, जिसका प्रतिलिपिकाल वि० सं १२८७ (ई. सन् १९३०) है। प्रतिके अन्तमें लिखा है___ "१२८७ वर्षे हरिचन्द्रकविविरचितधर्मशर्माभ्युदयकाव्यपुस्तिका श्रीरत्नाकरसूरिआदेशेने कीर्तिचन्द्रगणिना लिखितमिति भद्रम"। __ अतः इतना स्पष्ट है कि ई० सन् १२३० के पहले ही महाकवि हरिचन्द्रका धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य लिखा जा चुका था। श्री पंडित कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने अपने-'महाकवि हरिचन्दका समय शीर्षक निवन्धमें धर्मशर्माभ्युदयके ऊपर बोरनन्दिके चन्द्रप्रमचरित और हेमचन्द्र के 'योगसार' का प्रभाव बताया है। आपने लिखा है कि 'धर्मशर्माभ्युदय' में भोगोपभोगपरिमाणवतके अतिचारोंमें १५ खरकर्मोंका निर्देश किया है तथा अनर्थदंडवतके स्वरूपमें खरकर्मों के त्यागको स्थान दिया है । अतः हरिचन्दका समय वि० सं० १२०० के लगभग होना चाहिये ।' इस कथनका समर्थन प्रो० अमृतलालजी शास्त्रीने "महाकवि हरिचन्द' (जैन सन्देश शोधांक ७) शीर्षक निबन्धमें किया है । आपने श्री पंडिस कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीके प्रमाणोंको दुहराते हुए कुछ नवीन तथ्य भी प्रस्तुत किये, पर मूल तर्क दोनों महानुभावोंके समान हैं। ___ इस सम्बन्ध में विचारणीय यह है कि क्या खरकर्मोंका त्याग हेमचन्द्र के पूर्ववर्ती साहित्यमें भी मिलता है ? 'उवासगदसर के आनन्द अध्ययन और 'समराइच्चकहा' में भी खरकर्मोके त्यागका विवेचन है । अतः कवि हरिचन्दने खरकों के त्यागका कथन हेमचन्द्रके आधार पर न कर 'उवासगदसा' आदि ग्रन्थोंके आधार पर किया होगा । अतएव हेमचन्द्र के पश्चात् हरिचन्द्रका समय माननेका कोई सबल प्रमाण नहीं मिलता है । प्रो० के० के० हिण्डीकीने हरिचन्द्रको वादीभसिंहके पश्चात् (ई० सन् १०७५११७५)का कवि माना है, पर वादीसिंहके समयके सम्बन्ध में पर्याप्त मतभेद है। स्व० श्रीनाथरामजी प्रेमी वादीसिंहका काल वि० सं०की १२वीं शती; श्री पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री अकलंकदेवके समकालीन और श्री डॉ० १. पाटणके संघवीपाड़ाके पुस्तकभण्डारकी सूची, गायकवाड़ सीरिजसे प्रकाशित, बड़ौदा १९३७ ई.। २. अनेकान्त, वर्ष ८, किरण ११-१२, पृ० ३७६-३८२ । ३. भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित जीवन्ध रचम्पूका अंग्रजी प्राक्कथन (Fureword), ४. जनसाहित्य और इतिहास, द्वितीय संस्करण, पृ० ३२१ । ५. न्यायकुमुदचन्द्र', प्रथम भाग, माणिकचन्द्रग्रन्थमाला, १९३८, प्रस्ता० पु० १११ । आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १७
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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