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________________ प्रार्थमा की । पर उन्होंने कहा कि आप मेरे स्पानपर मेरे पुत्र नम्वलालको ले जाइये। यही उस विद्वानको शास्त्रार्य में परास्त कर देगा। हुआ भी यही । नन्दलालने अपनी युक्तियोंसे उस विद्वान्को परास्त कर दिया। इससे नन्दलालका बड़ा यश व्याप्त हया और उसे नगरको ओरसे उपाधि दी गयो। नन्दलालने जयचन्दजीको सभी टोकाग्रन्थों में सहायता दी है। सवार्थसिद्धिकी प्रशस्तिमें लिखा है लिखी यहे जयचन्दन सोधी सुत नन्दलाल | बुधलखि भूलि जु शुद्ध करी बांबो सिखे वो बाल ।। नन्दलाल मेरा सुत गुनी बालपने ते विद्यासुनी। पण्डित भयो बड़ो परवीन ताहूने यह प्रेरणकीन ।। पण्डित जयचन्दजीका समय वि० सं०को १९वीं शती है । इन्होंने निम्नलिखित ग्रंथोंकी भाषा वनिकाए लिखी है १. सर्वार्थसिद्धि वचनिका (वि० सं० १८६१ चैत्र शुक्ला पञ्चमो। २. तत्त्वार्थसूत्र भाषा ३. प्रमेयरत्नमाला टीका (वि० सं० १८६३ आषाढ़ शुक्ला चतुर्थी बुधवार) ४. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा वि० सं० १८६३ श्रावण कृष्णा ततीया) ५. द्रव्यसंग्रह टीका (वि० सं० १८६३ श्रावण कृष्णा चतुर्दशी और दोहा___मय पद्यानुवाद) ६. समयसार टोका (वि० सं० १८६४ कार्तिक कृष्णा दशमो) ७. देवागमस्तोत्र टीका (वि० सं० १८६६) ८. अष्टपाहुड भाषा (वि० सं० १८६७ भाद्र शुक्ला त्रयोदशी) ९. ज्ञानार्णव भाषा (वि० सं० १८६९) १०. भक्तामर स्तोत्र (वि० सं० १८७०) ११. पद संग्रह १२. चन्द्रप्रभचरित्र (न्यायविषयिक) भाषा | वि० सं० १८७४ १३. धन्यकुमारचरित्र पण्डित जयचन्दको बचनिकाओंकी भाषा ढूढारी है । क्रियापदोंके परिवर्तित करनेपर उनको भाषा आधुनिक खड़ी बोलीका रूप ले सकती है । उदाहरणार्थ यहाँ दो एक उद्धरण प्रस्तुत किये जाते हैं___"बहुरि वचन दोय प्रकार हैं, द्रव्यवचन, भाववचन | तहाँ वीर्यान्तराय मतिश्रुतज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशम होते अंगोपांगनामा नामकर्मके उदयतें आत्माके बोलनेकी सामर्थ्य होय, सो तो भाववचन है । सो पुद्गलकर्मके निमित्त२९२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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