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________________ निमित पाय जयपुरमें आय, बड़ी जु शैली देखी भाय ।। गुणी लोक साधर्मी मलं, ज्ञानी पंडित बहुत मिले | पहले थे बंशीधर नाम, धरै प्रभाव भाव शुभ ठाम ।। टोडरमल पंडित मत्ति खरी, गोमटसार वनिका करी । ताको महिमा सब जन करें, वाचें पढ़ें बुद्धि विस्तरें ।। दौलतराम गुणी अधिकाय, पंडितराय राजमैं जाय । ताको बुद्धि लस सब खरी, तीन प्रमाण वनिका करी॥ रायमल्ल त्यागी गृह वास, महाराम व्रत शोल निवास । मैं हूँ इनकी संगति ठानि, बुधसारू जिनवाणी जानि ।। अर्थात्-कविका जागी लाव ग्राममें मा। यह प्रा जयपुरसे डिग्गीमालपुरा रोडपर ३० मालकी दूरीपर बसा हुआ है। यहाँ आपके पिता मोतीरामजी पटवारीका काम करते थे। इसीसे आपका वंश पटवारी नामसे प्रसिद्ध रहा है। ११ वर्षको अवस्था व्यतीत हो जानेपर कदिका ध्यान जैनधर्मकी ओर गया और उसी में अपने हितको निहित समझकर आपने अपनी श्रद्धाको सुदृढ़ बनानेका प्रयत्न किया। फलत: जयचन्दजोने जैनदर्शन और तत्त्वज्ञानके अध्ययनका प्रयास किया । वि० सं० १८२१में जयपुरमें इन्द्रध्वज पूजा महोत्सवका विशाल आयोजन किया गया था। इस उत्सव में आचार्यकल्प पंडित टोडरमलजीके आध्यात्मिक प्रवचन होते थे। इन प्रवचनोंका लाभ उठाने के लिए दूर-दूरके व्यक्ति वहाँ आये थे। पण्डित जयचन्द भो यहाँ पधारे और जैनधर्मकी ओर इनका पूर्ण झुकाव हुआ । फलत: ३-४ वर्षके पश्चात् ये जयपुरमें ही आकर रहने लगे । जयचन्दजोने जयपुर में सैद्धान्तिक ग्रन्थोंका गम्भीर अध्ययन किया। जयचन्दजीका स्वभाव सरल और उदार था। उनका रहन-सहन और देश-भूषा सीधी-सादी थी। ये श्रावकोचित क्रियाओंका पालन करते थे और बड़े अच्छे विद्याव्यसनी थे। अध्ययनार्थियोंको भीड़ इनके पास सदा लगी रहती थी। इनके पुत्रका नाम नन्दलाल था, जो बहुत ही सुयोग्य विद्वान् था और पण्डितजोके पठन-पाठनादि कार्यो में सहयोग देता था। मन्नालाल, उदयचन्द और माणिकचन्द इनके प्रमुख शिष्य थे। एक दिन जयपुरमें एक विदेशी विद्वान शास्त्रार्थ करनेके लिए आया । नगरके अधिकांश विद्वान उससे पराजित हो चुके थे । अतः राज्य कर्मचारियों और विद्वान पंचोंने पण्डित जयचन्दजीसे, उक्त विद्वान्से शास्त्रार्थ करनेकी आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २९१
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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