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________________ चैतन्य स्वरूपका जो सविकल्पसे निश्चय किया था, उस ही में व्याप्य-व्यापकरूप होकर इस प्रकार प्रर्वत्तता है जहां ध्याता-ध्येयपना दूर हो गया। सो ऐसी दशाका नाम निर्विकल्प अनुभव है । बड़े नवचक्र पम्प ऐसा ही नहीं है...... तचाणेसणकाले समयं बुज्झेहि जुत्तिमम्गेण 1 णो आराइण समये पच्चक्खो अणुहको जम्हा ।।२६६।।" शुद्ध आत्माको नय-प्रमाण द्वारा अवगत कर जो प्रत्यक्ष अनुभव करता है वह सविकल्पसे निर्विकल्पक स्थितिको प्राप्त होता है। जिस प्रकार रनको खरीदने में अनेक विकल्प करते हैं, जब प्रत्यक्ष उसे पहनते हैं तब विकल्प नहीं है, पहननेका सुख ही है । इस प्रकार सविकल्पके द्वारा निर्विकल्पका अनुभव होता है । इसी चिट्ठी में प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाणोंके भेदके पश्चात् परिणामोंके अनुभवकी चर्चा की गई है । कयनकी पुष्टि के लिए आगमके ग्रन्थोंके प्रमाण भी दिये गये हैं। ५० टोडरमल गद्यलेखकके साथ कवि भी हैं। उनके कविहृदयका पता टीकाओंमें रचित पद्योंसे प्राप्त होता है। लब्धिसारको टीकाके अन्त में अपना परिचय देते हुए लिखा हैमैं हों जीव द्रव्य नित्य चेतना स्वरूप मेरो; लग्यो है अनादि ते कलंक कर्म-मलको । वाहीको निमित्त पाय रागादिक भाव भए, भयो है शरीरको मिलाप जैसे खलको । रागादिक भावनको पायके निमित्त पुनि, होत कर्मबन्ध ऐसो है बनाव कलको । ऐसे ही भ्रमत भयो मानुष शरीर जोग, बने तो बने यहाँ उपाय निज थलको ।। दौलतराम द्वितीय कवि दौलतराम द्वितीय लब्धप्रतिष्ठ कवि हैं। ये हाथरसके निवासी और पल्लीवाल जातिके थे 1 इनका गोत्र गंगटीवाल था, पर प्राय: लोग इन्हें फतेहपूरी कहा करते थे । इनके पिताका नाम टोडरमल था । इनका जन्म वि० सं० १८५५ या १८५६के मध्य हुआ था। कविके पिता दो भाई थे। छोटे भाईका नाम चुन्नीलाल था। हाथरसमें हो दानों भाई कपड़ेका व्यापार करते थे। अलीगढ़ निवासी चिन्तार्माण कविके २८८ : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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