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________________ प्रकाण्ड पाण्डित्य और उनके विशाल ज्ञानकोशका परिचय प्राप्त होता है । इस अध्यायसे यह स्पष्ट है कि सत्यान्वेषी पुरुष विविध मतोंका अध्ययन कर अनेकान्तबुद्धिके द्वारा सत्य प्राप्त कर लेता है। षष्ठ अधिकारमें सस्थतत्त्वविरोधी असत्यायतनोंके स्वरूपका विस्तार बतलाया गया है । इसमें यही बतलाया गया है कि मुक्तिके पिपासुको मुक्तिविरोधी तत्त्वोंका कभी सम्पर्क नहीं करना चाहिए। मिथ्यात्वभावके सेवनसे सत्यका दर्शन नहीं होता। सप्तम अधिकारमें जेन मिथ्या दृष्टिका विवेचन किया है । जो एकान्त मार्गका अवलम्बन करता है वह ग्रन्थकारको दृष्टिमें मिथ्यादष्टि है। रागादिकका घटना निर्जराका कारण है और रागादिकका होना बन्धका । जेनाभास, व्यवहारामासके कथनके पश्चात्, तत्त्व और ज्ञानका स्वरूप बतलाया गया है । अष्टम अधिकारमें आगमक स्वरूपका विश्लेषण किया है। प्रथभानुयोग, करणानुयोग, द्रव्यानुयोग और चरणानुयोगके स्वरूप और विषयका विवेचन किया गया है। नवम अधिकारमें मोक्षमार्गका स्वरूप, आत्महित, पुरुषार्थसे मोक्षप्राप्ति, सम्यक्त्वके भेद और उसके आठ अंग आदिका कथन आया है। इस प्रकार पं० टोडरमलने मोक्षमार्गप्रकाशकमें जैनतत्त्वज्ञानके समस्त विषयोंका समावेश किया है। यद्यपि उसका मूल विषय मोक्षमागका प्रकाशन है; किन्तु प्रकारान्तरसे उसमें कर्मसिद्धान्त, निमित्त-उपादान, स्यावाद-अनेकान्त, निश्चय-व्यवहार, पुण्य-पाप, देव और पुरुषार्थपर तात्त्विक विवेचना निबद्ध की गयी है। रहस्यपूर्ण चिट्टीमें पं० टोडरमलने अध्यात्मवादको ऊँची बातें कही है। सविकल्पके द्वारा निर्विकल्पक परिणाम होनेका विधान करते हुए लिखा है "वही सम्यक्ची कदाचित् स्वरूप ध्यान करनेको उद्यमी होता है, वहां प्रथम भेदविज्ञान स्वपरका करे, नोकर्म-द्रव्यकर्म-भावकर्म रहित केवल चैतन्य. चमत्कारमात्र अपना स्वरूप जाने; पश्चात् परका भी विचार छूट जाय, केवल स्वात्मविचार ही रहता है। वहां अनेक प्रकार निजस्वरूपमें अहंबुद्धि धरता है। चिदानन्द है, सुख हूँ, सिद्ध हूँ, इत्याधिक विचार होनेपर सहज ही आनन्दतरंग उठती है, रोमांच हो आता है, सत्पश्चात् ऐसा विचार तो छुट जाय, केवल चिन्मात्र स्वरूप भासने लगे; वहाँ सर्वपरिणाम उस रूपमें एकाग्र होकर प्रवर्तते हैं; दर्शन-ज्ञानादिकका + नय-प्रमाणादिकका भी विचार विलय हो जाता है।" आचार्यसुल्प काव्यकार एवं लेखक : २८७
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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