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समृद्ध बनाने वाले थे । उस हरिचन्दके एक लक्ष्मण नामका भाई था, जो उन्हें उतना ही प्रिय था, जितना रामकोण !
कविका वंश या गोत्र नोमक न होकर नेमक होना चाहिये, क्योंकि नेमक गोत्रका उल्लेख कालञ्जरके एक अभिलेख में भी आया है
"नेमकान्व यजेन्दकसुतते दु केन भगवत्थाः कारितमण्डपिका प्रसक्षेन तदभायें
या लक्ष्म्या : |
कविका उपनाम चन्द्र था । १२वीं शताब्दी में धर्मशर्माभ्युदयका एक श्लोक जहणकी सूक्तिमुक्तावली में चन्द्रसूर्य के नामसे उपलब्ध है । अतः कविका चन्द्र उपनाम सिद्ध होता है ।
कविका जन्म कहाँ हुआ और उसने अपने इस ग्रन्थकी रचना कहाँ की, इसका निश्चित रूपमें परिचय प्राप्त नहीं है ।
१०वीं से १२वीं शताब्दीके राजनैतिक और सांस्कृतिक इतिहासका अध्ययन करनेसे अवगत होता है कि गुजरात और उसके पाश्ववर्ती प्रदेशों में चालुक्य, सोलंकी, राष्ट्रकूट, कलचुरी, शिलाहार आदि राजवंशोंका राज्य था । इनमेंसे प्रत्येकने जैनधर्मकी उन्नति के लिये विशेष योगदान दिया | धर्मशर्माभ्युदयकी संघवी पाडा पुस्तकभंडारको १७६ संख्यक प्रतिमें गुर्जर और विद्यापुर देशका नाम आया है। विद्यापुर आधुनिक बीजापुर ही है । इस प्रतिको लिखनेवाले संझाक हुम्बड़वंशीय थे । अतएव हरिचन्द्र बीजापुर अथवा गुजरातके पार्श्ववर्ती किसी प्रदेशके निवासी रहे होंगे ।
हरिचन्द्रका व्यक्तित्व कवि और आचारशास्त्रके वेत्ताके रूपमें उपस्थित होता है। इन्होंने रघुवंश, कुमारसंभव, किरात, शिशुपालवध, चन्द्रप्रभचरित प्रभृति काव्यग्रन्थोंके साथ तत्त्वार्थसूत्र, उत्तरपुराण, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, उवासगदसा, सर्वार्थसिद्धि प्रभृति ग्रन्थोंका भी अध्ययन किया था। दर्शन और काव्य के जो सिद्धान्त इनके द्वारा प्रतिपादित हैं, उनसे कविको प्रतिभा और
१. एपिग्राफिक इन्डिका, पृ० २१० ।
२. धर्मशर्माभ्युदयका २१४४ श्लोक जल्हण - सूक्तिमुक्तावली १० १८५ में चन्द्र सूर्यके नामसे उपलब्ध है ।
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३. अथास्ति गुर्जरो देशो विख्यातो भुवनत्रये ।
विद्यापुरं पुरं तत्र हस्तलिखित प्रति पाटणसे प्राप्त ।
विद्यात्रिभवसंभवम् ।। १७६ नं०की धर्मशर्माभ्युदयकी
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १५