SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवसर, सत्कार्यता और रूपाकृतिका पूरा ध्यान रखा गया है । अवान्तर कथाओंका प्रक्षेपण पूर्वभवावलिके रूपमें किया है। वर्द्धमानका जोवनविकास अनेक भवों-जन्मोंका लेखा-जोखा है । कर्मवादके भोक्ता नायक-नायिकाएं मुनिराज द्वारा अपने विगत जोवनके इतिवृत्तको सुनकर विरक्ति धारण करते हैं । जीवनकी अनेक विषमताएं कथावस्तुमें विकसित हुई हैं। कविने रसानुरूप सन्दर्भ और अर्थानुरूप छन्दोंको योजना, जीवन के व्यापक अनुभवोंका विश्लेषण एवं वस्तुओंका अलंकृत चित्रण किया है । इस महाकाव्यका प्रतिनायक विशाखनन्दि है, जिसके साथ कई जन्मों तक विरोध चलता है । कवि असने संगठित कथानकके कलेवर में जीवन के विविध पक्षोंका उद्घाटन करने के लिए वस्तु व्यापार, प्रकृतिचित्रण, रसभावसंयोजन एवं अलंकारनियोजन किया है | २|४५ में अनुप्रास, २२७ में यमक और ५३५, ३७, ५1८, ६३४, ६६८, ७८ ७१४१, ७१८५ ८/२६, ८/६७, ८१७५, १९/७ ९/१०, १२१२९, ९/३५, ९/३९, १०१२२, १०/२३, १०/२४ १२ १० १२ ११, १२/१६, १३३८, १३।४५, १३/६१, १३/७३, १४८, १४९, १७/१५, १७/२१, एवं १८/६ में एलेषका प्रयोग हुआ है | १|४० में उपमा, ४ १० में उत्प्रेक्षा, १३।५८ में रूपक, ५ ३४में भ्रांतिमान ५११ अद्भुत सरस अतिशयोक्ति, १४६ दृष्टान्त, १३४६ में विभावना १३१४४ में अर्थान्तरन्यास, ५ / ७० में सन्देह, ५/२० में व्यतिकर, ३।९ में विरोधाभास, ५।१३ में परिसंख्य, १३४ में एकावली, ५/५४में स्वभावोक्ति ५/५५ में सहोषित ७/२१ में विनोक्ति और १।६४ में विशेषोक्ति अलंकार पाये जाते हैं। छन्दों में उपजाति, वसन्ततिलका, शिखरिणी, वशंस्थ, शार्दूलविक्रीडित, मालिनी, अनुष्टुप, मालभारिणी, मन्दाक्रान्ता, उपजाति, सगधरा, आख्यानकी, शालिनी, हरिणी, ललिता, रथोद्धता, स्वागता आदि प्रमुख है । कविका 'शान्तिनाथचरित' भी महाकाव्य है । इस काव्य में १६ वें सीर्थंकर शान्तिनाथका जीवनवृत्त वर्णित है। कथावस्तु की पृष्ठभूमि के रूपमें पूर्वभवाafa fres की गयी है । कथावस्तुकी योजना में कविको पूर्ण सफलता मिली है । सन्ध्या, प्रभात, मध्याह्न, रात्रि, वन, सूर्य, नदी, पर्वत, समुद्र, द्वीप, आदि वस्तुवर्णन सांगोपांग है । जीवनके विभिन्न व्यापार और परिस्थियों में प्रेम, विवाह, मिलन, स्वयंवर, सैनिक, अभियान, युद्ध, दोक्षा, नगरावरोध, विजय, उपदेशसभा, राजसभा, दूतसंप्रेषण एवं जन्मोत्सवका चित्रण किया है । , रस, भाव, अलंकार और प्रकृति-चित्रण में भी कविको सफलता मिली है । यह सत्य है कि वृद्ध मानचरितको अपेक्षा शान्तिनाथचरितमें अधिक पौराणि आचार्य तुष्य काव्यकार एवं लेखक : १३
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy