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आठ ग्रन्थों की रचना की है । 'वर्द्धमानचरित' को प्रशस्तिके अनुसार इस काव्यका रचनाकाल शक संवत् ९१० (ई. ९८८) है। कविने अपने गुरुका नाम नागनन्दि बताया है। इन नागनन्दिका परिचय श्रवणवेलगोलाके अभिलेखोंमें पाया जाता है। १०८ वें अभिलेखसे अवगत होता है कि नागन्दि नन्दिसंघके आचार्य थे, पर नन्दिसंघकी पट्टावलीमें नागमन्दिके मम्बन्धमें कोई सूचना उपलब्ध नहीं होती है। अतएव नईमान रतके आधारपर कविका समय ई० सन् की १०वीं शताब्दी है। ___ कविकी दो रचनाएं प्राप्त हैं—वद्धमानचरित और शान्तिनाथचरित । बर्द्धमानचरित महाकाव्यमें १८ सर्ग है और तीर्थंकर महावीरका जीवनवृत्त अंकित है। इस ग्रन्थका सम्पादन और मराठी अनुवाद जिनदासपाश्र्वनाथ फडकुलेने सन् १९३१में किया है। मारोच, विश्वनन्दि, अश्वनोद, त्रिपृष्ठ, सिंह, कपिष्ठ, हरिषेण, सूर्यप्रभ इत्यादि के इतिवृत पूर्वजन्मोंकी कथाके रूपमें अंकित किये गये हैं।
महाकवि असामने अपने इस बर्द्धमानचरितको कथावस्तु उत्तरपुराणके ७४वें पर्वसे ग्रहण की है । इस पुराणमैं मधुवनमें रहनेवाले पुरुरवा नामक भिल्लराजसे वर्द्धमानके पूर्वभवोंका आरम्भ किया गया है । कविने उत्तरपुराणको कथावस्तुको काल्योचित बनानेके लिये कांट-छांट भी की हैं। असगने पुरुरवा और मरीचके आख्यानको छोड़ दिया है और श्वेतातपत्रा नगरीके राजा नन्दिवर्द्धनके आँगनमें पुत्र-जन्मोत्सवसे कथानकका प्रारम्भ किया है। इसमें सन्देह नहीं कि यह आरम्भस्थल बहुत रमणीय है। उत्तरपुराणको कथावस्तुके प्रारम्भिक अंशको घटितरूपमें न दिखलाकर पूर्वभवाबलिके रूपमें मुनिराजके मुखसे कहलवाया है। इस प्रकार उत्तरपुराणकी कथावस्तु अक्षुण्ण रह गयी है। ___ कथावस्तुके गठनमें कवि असगने इस बातको पूर्ण चेष्टा की है कि पौराणिक कथानक कान्यके कथानक बन सकें। घटनाओंका पूर्वापर क्रमनिर्धारण, उनमें परस्पर सम्बधस्थापन एवं उपाख्यानोंका यथास्थान संयोजन मौलिक रूपमें घटित हुआ है । प्रसंगोंको व्यर्थ वर्णनविस्तार नहीं दिया है । मार्मिक प्रसंगोंके नियोजनके हेतु विश्वनन्दि और नन्दन के जीवन में लोकव्यापक नाना सम्बन्धोंके कल्याणकारी सौन्दर्यको अभिव्यकजना की है । पिता-पुत्रका स्नेह नन्दिवर्द्धन और नन्दनके जीवनमें, भाईका स्नेह विश्वभूति और विशाखभूतिके जीवनमें, पति-पत्नोका स्नेह त्रिपृष्ठ और स्वयंप्रभाके जीवनमें, विविध भोगविलास हरिषेणके जीवन में एवं वीरता और चमत्कारोंका वर्णन त्रिपृष्ठके जीवन में अभिव्यक्त कर जीवनको व्याख्या प्रस्तुत की गयी है । कथानियोजनमें योग्यता, १२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा