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विधानको रचना की है । इस रचनामें जगजीवनका परिचय निम्न प्रकार दिया है
अब सुनि नगरराज आगरा, सकल सोभा अनुपम सागरा । साहजहाँ भूपति है जहाँ, राज करे नयमारग तहाँ ।। ताको जाफरखौ उमराब, पंच हजारी प्रकट कराउ । ताको अगरवाल दोवान, गरग गोत सब विधि परवान ।। संघही अभेराज जानिए, सुखी अधिक सब करि मानिए। वनितागण नाना परकार, तिनमें लघु मोहनदे सार । ताको प्रत पृत-सिरमौर, जगजीवन जीवनकी ठौर ।
सुन्दर सुभग रूप अभिराम, परम पुनीत धरम-धन-धान ॥ जगजीवनने सं० १७०१में बनारसीविलासका संपादन किया था। इनके अब तक ४५ पद भी उपलब्ध हो चुके हैं। इनके पदोंको तीन धर्मों में विभक्त किया जा सकता है
१. प्रार्थना एवं स्तुतिपरक २. आध्यात्मिक ३. सांसारिक प्रपञ्चके विश्लेषण-मूलक
यहाँ उदाहरणके लिए एक पदकी कुछ पंक्तियां उद्धृत की जाती हैं । कविने सांसारिक प्रपञ्चको बादलकी छाया माना है और छायाका रूपक देकर पुरजन, परिजन, इन्द्रिय-विषय, राग-द्वेष-मोह, सुमति-कुमति सभोको व्याख्या स्तुित की है । यथा
जगत सब दीसता घनको छाया ॥ पुत्र कलत्र मित्र तन संपत्ति
उदय पुद्गल जुरि आया। भव परनति वरषागम सोहे
आश्रव पवन बहाया जगत १॥ इन्द्रियविषय लहरि तड़ता है
देखत जाय विलाया। राग दोष वगु पंकति दोरघ ___मोह गहल घरराया ।।जगत०|२।। सुमति विरहनो दुखदायक है,
कुमति संजोगति भाया।
आचार्यतुल्म कान्यकार एवं लेखक : २६१