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४१. गोरखनाथके वचन, ४२. वैद्य आदिके भेद, ४३. परमार्थवचनिका, ४४. उपादान - निमित्तकी चिट्ठी ४५ निदि, २६४७ पर
मायें हिंडोलना, ४८ अष्टपदी मल्हार ।
इन समस्त रचनाओंमें हमें महाकविकी बहुमुखी प्रतिभा, काव्य कुशलता एवं अगाध विद्वत्ताके दर्शन होते हैं । धार्मिक मुक्तकों में कविने उपमा, रूपक, दृष्टान्त, अनुप्रास आदि अलंकारोंकी योजना की है। सैद्धान्तिक - रचनाओंमें विषय-प्रधान वर्णन-शैली है । इन रचनाओं में कवि, कवि न रहकर, तार्किक हो गया है । अतः कविता तर्कों, गणनाओं, उक्तियों और दृष्टान्तोंस बहुधा बोझिल हो गई हैं । कविने सभी सिद्धान्तों का समावेश सरल-शैली में किया है ।
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मोह-विवेक युद्ध - इस रचनाको कुछ लोग बनारसीदासकृत मानते है और कुछ लोग उसके विरोधी भो हैं । कृतिके आरंभ में कहा है कि मेरे पूर्ववर्ती कविमल्ल, लालदास और गोपाल द्वारा पृथक-पृथक रखे गये मोहविवेकयुद्धके आधारपर उनका सार लेकर इस ग्रंथको संक्षेपमें रचना को जा रही है । इससे स्पष्ट है कि कविने उक्त तीनों कवियोंके ग्रंथोंका सार ग्रहणकर ही अपने इस ग्रन्थको रचना की है ।
इसमें ११० दोहा चौपाई है। यह लघु खण्ड-काव्य है। इसका नायक मोह हैं और प्रतिनायक विवेक । दोनोंमें विवाद होता है और दोनों ओरकी सेनाएँ सजकर युद्ध करती हैं। महाकवि बनारसीदासकी शैली प्रसन्न और गम्भीर है । उन्होंने अध्यात्मकी बड़ी से बड़ी बातों को संक्षेपमें सरलतापूर्वक गुम्फित कर दिया है ।
अर्द्धकथानक में कविने अपनी आत्म-कथा लिखी है । इसमें सं० १६९८ तक की सभी घटनाएँ आ गई हैं। कविने ५५ वर्षोंका यथार्थ जोवनवृत्त अंकित किया है।
पं० रूपचन्द या रूपचन्द पाण्डेय
पं० रूपचन्द्र और पाण्डेय रूपचन्द्र दोनों अभिन्न व्यक्ति प्रतीत होते हैं । महाकवि बनारसीदासने इन दोनों का उल्लेख किया है । नाटकसमयसार की प्रशस्ति में रूपचन्दपडित कहा है और अर्द्धकथानक में पाण्डेय रूपचन्द कहा गया है । बनारसीदासने अपने गुरुरूपमें पाण्डेय रूपचन्दका उल्लेख करते हुए लिखा है
तब बनारसी और भयो । स्यादवाद परिनति परिनयौ । पांडे रूपचन्द गुरु पास सुन्यो ग्रन्थ मन भयो हुलास ॥
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक २५५