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स्थिति काल
बनारसीदासका समय वि० की १७वीं शती निश्चित है, क्योंकि उन्होंने स्वयं ही अपने अर्द्धकथानकमें अपनी जीवन-तिथियोंके सम्बन्धमें प्रकाश डाला है । रचनाएं
बनारसीदासके नामसे निम्न लिखित रचनाएं प्रचलित हैं--१. नाममाला, २. समयसारनाटक, ३. बनारसीविलास, ४. अर्द्धकथानक, ५. मोहविवेकयुद्ध एवं ६. नवरसपद्यावली।
नाममाला-प्रा रचनाओंमें नाममाला सबसे पूर्व की है। इसका समाप्तिकाल वि० सं० १६७० आश्विन शुक्ला दशमी है। परममिन नरोत्तमदास सोवरा और थानमाल सोवराकी प्रेरणासे कविने यह रचना लिखी है । यह पद्यबद्ध शब्दकोष १७५ दोहोंमें लिखा गया है। प्रसिद्ध कवि धनञ्जयको सस्कृत नाममाला और अनेकार्थकोशके आधारपर इस ग्रंथको रचना हुई है । कविको इसको साज-सज्जा, व्यवस्था, शब्द-योजना और लोकप्रचलित शब्दोंकी योजनाके कारण इसे मौलिक माना जा सकता है।
नाटक समयसार अध्यात्म-संत कविवर बनारसीदासकी समस्त कृतियों में नाटक-समयसार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। आचार्य कुन्दकुन्दके समय पाहुडपर आचार्य अमृतचन्द्रको आत्मस्याति नामक विशद टीका है। ग्रंथके मूल भावोंको विस्तुत करनेके लिए कुछ संस्कृत-पद्य भो लिखे गये हैं, जो कलश नामसे प्रसिद्ध हैं। इसमें २७७ पद्य हैं। इन कलशोंपर भट्टारक शुभचन्द्रको परमाध्यात्मतरंगिणीनामक संस्कृत-टीका भी है। पाण्डेय राजमलने कलशोंपर बाल-बोधिनी नामक हिन्दी-टोका भी लिखी है। इसी टीकाको प्राप्त कर बनारसीदासने कवित्तबद्ध नाटक-समयसारकी रचना की है। इस ग्रंथमें ३१० दोहा-सोरठा, २४५ इकत्तीसा कवित्त, ८६ चौपाई, ३७ तेइसा सवेया, २० छप्पय, १८ घनाक्षरी, ७ अडिल्ल और ४ कुंडलियां इस प्रकार सब मिलाकर ७२७ पध हैं। बनारसीदासने इस रचनाको वि० सं० १६९३ आश्विन शुक्ला, त्रयोदशी रविवारको समाप्त किया है।
नाटक-समयसारमें जीवद्वार अजीवद्वार, कर्ता-कर्म-क्रियाद्वार, पुण्यपापएकत्व-द्वार, आस्रव-द्वार, संवरद्वार, निर्जराद्वार, बन्धद्वार, मोक्षद्वार सर्वविशुद्धिद्वार, स्याद्वादद्वार, साध्यसाधकद्वार और चतुर्दश गुणस्थानाधिकार प्रकरण हैं। नामानुसार इन प्रकरमों में विषयोंका निरूपण किया गया है। कविने इस नाटकको यथार्थताका विश्लेषण करते हुए लिखा है२५२ : सीकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा