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________________ थी, जिसे पीछे बोध आनेपर गोमतीमें प्रवाहित कर दिया। १५ वर्ष १० महोना की अवस्थामें कवि सजधज अपनी ससुराल खैरावातसे पत्नीका द्विरागमग कराने गया । ससुराल में एक माह रहने के उपरान्त कविको पूर्वोपार्जित अशुभोदयके कारण कुष्ठ रोग हो गया। विवाहिता भार्या और सासुके अतिरिक्त सबने साथ छोड़ दिया । वहाँके एक नाईको चिकित्सासे कविको कुष्ठ रोगसे मुक्ति मिली। कविके पिता खड्गसेन सं० १६६१में हीरानन्दजी द्वारा चलाये गये शिखरजी यात्रा-संघमें यात्रार्थ चले गये। बनारसीदास बनारस आदि स्थानोंमें घूमकर अपना समय-यापन करते रहे । वि० सं० १६६६में एक दिन पिताने पुत्रसे कहा-"वत्स ! अब तुम सयाने हो गये हो, अतः घरका सब कामकाज संभालो और हमें धर्मध्यान करने दो।" पिताकी इच्छानुसार कवि घरका काम-काज करने लगा। कुछ दिन उपरान्त वह दो होरेकी अंगूठी, २४ माणिक्य, ३४ मणियाँ, ९ नीलम, २० पन्ना, ४ गाँठ फुटकर चुन्नी इस प्रकार जवाहरात, २० मन घी, २ कुप्पे तेल, २०० रुपयेका कपड़ा और कुछ नगद रुपये लेकर आगराको व्यापार करने चला । प्रतिदिन पाँच कोसके हिसाबसे चलकर गाड़ियां इटावाके निकट आई। वहाँ मंजिल पूरी हो जानेसे एक बीहड़ स्थानपर डेरा डाला। थोड़े समय विश्राम कर पाये थे कि मूसलाधार बारिस होने लगी। तुफान और पानी इतनी तेजीसे बह रहे थे कि खुले मैदानमें रहना अत्यन्त कठिन था। गाड़ियों जहाँ-की-तहाँ छोड़ साथी इधर-उधर भागने लगे। शहरमें भी कहीं शरण न मिली । किसी प्रकार चौकीदारोंकी झोपड़ीमें शरण मिली और कष्टपूर्वक रात्रि व्यतीत हई । प्रातःकाल गाडियां लेकर आगरेको चला और मोतीकटरामें एक मकान लेकर सारा सामान रख दिया। व्यापारसे अनभिज्ञ होने के कारण कविको घी, तेल और कपडे में घाटा ही रहा । बिक्रीके रुपयोंको हुण्डी द्वारा जौनपुर भेज दिया । जवाहरात घाटे में बेंचे और दुर्भाग्यसे कुछ जवाहरात उससे कहीं गिर गये। माल बहुत था । इससे अत्यधिक हानि हुई । एक जड़ाऊ मुद्रिका सड़कपर गिर गई और दो जड़ाऊ पहुंची किसी सेठको बेंची थी, जिसका दूसरे दिन दिवाला निकल गया। इस प्रकार धनके नष्ट होनेसे बनारसीदासके हृदयको बहुत बड़ा धक्का लगा । इससे संध्या-समय उन्हें ज्वर चढ़ आया और दस लंघनोंके पश्चात् ठीक हुआ । इसी बीच पिताके कई पत्र आये, पर इन्होंने लज्जावश उत्तर नहीं दिया। सत्य छिपाये नहीं छिपता । अत: इनके बड़े बहनोई उत्तमचन्द जौहरीने समस्त घटनाएँ इनके पिताके पास जौनपुर लिख दी । खड्गसेन पश्चाताप करने लगे। जब बनारसोदासके पास कुछ न बचा, तब गृहस्थीकी चीजें बेंच-बेंच कर __२५० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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