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तृतीय परिच्छेद हिन्दी कवि और लेखक
संस्कृत, प्राकृत और और अपभ्रंशके समान ही जैन कवि और लेखकोंने हिन्दी भाषा में भी अनेक ग्रन्थोंका प्रणयन किया । अपभ्रंश और पुरानी हिन्दीके जैन कवियोंने लोकप्रचलित कथाओं को लेकर उनमें स्वेच्छानुसार परिवर्तन कर सुन्दर काव्य लिखे । मध्यकालके प्रारम्भमें समाज और धर्म संकीर्ण हो रहे थे । अतः जैन लेखकोंने अपने पुरातन कथानकों और लोकप्रिय परिचित कथानकोंमें जैन धर्मका पुट देकर अपने सिद्धान्तोंके अनुकूल हिन्दी भाषा में काव्य लिखे ।
बाहरी बेशभूषा, पाखण्ड आदिका, जिनसे समाज विकृत होता जा रहा था, बड़ी ही ओजस्वी वाणी में हिन्दीके जैन कवियोंने निराकरण किया । अपभ्रंशसाहित्यकी विभिन विधाओंने सामान्यतः हिन्दी साहित्यको प्रभावित किया था । अत: जैन कवि व्रज और राजस्थानी में प्रबन्ध-काव्य और मुक्तक-काव्योंकी रचना करनेमें संलग्न रहे । इतना ही नहीं, जैन कवि मानव जीवनकी विभिन्न समस्याओं
२४६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा