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________________ आत्मा महावीरके समान वीतराग-सर्वत्र है और हेय आत्मा छद्भस्थके समान रागो-अज्ञानी है, इसका विशद वर्णन है। १४. नाममाला-तारणस्वामीका यह अन्तिम ग्रन्थ है । इसमें उनके उपदेशके पात्र सभी भव्यात्माओंको नामावली है और बताया गया है कि उनके उपदेशके लिए जाति, पद, भाषा, देश या धर्म की रेखाएं बाधक नहीं थी-सब उनके उपदेशसे लाभ उठाते थे । ___ स्वामोजीके मुख्य तीन केन्द्र हैं-~१. ज्ञान-साधना, २. ज्ञान-प्रचार और समाधिस्थल । श्री सेमरखेड़ो (सिरोंज से ६ मील दूर) जिला विदिशामें आपने ज्ञानर्जन किया था। वहाँ एक चेस्यालय, धर्मशाला और शास्त्रमण्डार है। बसन्त पंचमीपर बार्षिक मेला भरता है। श्रोनिसईजी (रेलवे स्टेशन परिया, जिला दमोहसे ११ मौलपर स्थित)में अपने प्राप्त ज्ञानका प्रचार-प्रसार किया था ! यहाँ भी विशाल चैत्यालय, धर्मशाला और शास्त्रभण्डार है। अगहन सुदी ७ को प्रतिवर्ष सामाजिक मेला लगता है। श्री मल्हारगढ़ (रेलवे स्टेशन मुंगवली, जिला गुनासे ९ मोलकी दूरीपर स्थित)में वेतवा नदीके सटपर स्वामीजीने उक्त ग्रन्थोंका प्रणयन किया और यहीं समाधिपूर्वक देहत्याग किया। इसमें सन्देह नहीं कि तारणस्वामी १६वीं शतीके लोकोपकारी और अध्यात्म-प्रचारक सन्त हैं । इनके ग्रन्थोंको भाषा उस समयको बोलवालको भाषा जान पड़ती है, जो अपशकी कोटिमें रखी जा सकती है। हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत और तत्कालीन बोलोके शब्दोंसे ही उनके ये ग्रन्थ सृजित हैं। इसप्रकार अपभ्रंश-साहित्यको विकासोन्मुख साहित्य-धारा ६वीं शतीके आरंभ होकर १७वीं शती तक अनवरत रूपसे चलतो रही । इन कवियोंने मध्यकालीन लोक-संस्कृति, साहित्य, उपासनापद्धति एवं उस समय में प्रचलित आचार-शास्त्रपर प्रकाश डाला है। अपभ्रंश कवियोंने तीर्थकर महाबीरकी उत्तरकालीन परम्पराका सम्यक निर्वाह किया है। पुराण, आचार-शास्त्र, प्रतविधान आदिपर सैकड़ों ग्रन्थोंको उन्होंने रचना की है । आचार्यतुल्य काध्यकार एवं लेखक : २४५
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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