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________________ भी जानकारी प्राप्त नहीं होती। अनुमानतः कविका समय वि• की १५वों शताब्दी प्रतीत होता है। पं० योगदेव पं० योगदेवने कुम्भनगरके मुनिसुव्रतनाथचैत्यालयमें बैठकर 'बारस अणुवेक्खारास' नामक ग्रंयकी रचना की है । यह ग्रंथ भी १५वीं-१६वीं शताब्दीका प्रतीत होता है। कवि लक्ष्मीचन्द लक्ष्मीचन्दने 'अणुवेक्खा-दोहा'की रचना की है । इसमें ४७ दोहे हैं। सभी दोहे शिक्षाप्रद और आत्मोद्बोधक है। कवि नेमिचन्द नेमिचन्द भी १५वीं शतीके प्रसिद्ध कवि हैं। इन्होंने 'रविव्रतकथा', 'अनन्तव्रत कथा' आदि ग्रंथोंकी रचना की है। कवि देवदत वि० सं० १०५०के लगभग हुए कवि देववत्तका नाम भी अपभ्रंशके रायताओंमें मिलता है। देवदत्तने वरांगचरिउ, शान्तिनाथपुराण और अम्बादेवी रासकी रचना की है। तारणस्वामी तारणस्वामी बालब्रह्मचारी थे । आरम्भसे ही उन्हें घरसे उदासीनता और आत्मकल्याणकी रुचि रही। कुन्दकुन्दके समयसार, पूज्यपादके इष्टयोपदेश और समाधिशतक तथा योगीन्दुके परमात्मप्रकाश और योगसारका उनपर प्रभाव लक्षित होता है। संवेगी-श्रावक रहते हुए भी अध्यात्म-शानकी भूख और उसके प्रसारकी लगन उनमें दृष्टिगोचर होती है। तारणस्वामीका जन्म अगहन सुदी ७, विक्रम संवत् १५०५ में पुष्पावती (कटनी, मध्यप्रदेश) में हुआ था। पिताका नाम गढ़ासाहू और मासाका नाम वीरश्री था । ज्येष्ठ वदो ६, विक्रम संवत् १५७२ में शरीरत्याग हुआ था। ६७ वर्षके यशस्वी दीर्घ जीवन में इन्होने ज्ञान-प्रचारके साथ १४ ग्रन्थोंकी रचना भी को है। ये सभी ग्रन्थ आध्यात्मिक हैं, जिन्हें तारण-अध्यात्मवाणोके नामसे जाना जाता है। वे १४ ग्रन्थ निम्न प्रकार है-- १. मालारोहण-इसमें 'ओम' के स्वरूपपर प्रकाश डाला गया है और बताया गया है कि जो इस 'ओम्' का ध्यान करते हैं उन्हें परमात्मपदको प्राप्ति तथा अक्षयानन्दकी प्राप्ति होती है । आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २४३
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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