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________________ एकाधिक रचनाएँ लिखी हैं। हम यहाँ कतिपय ऐसे कवियोंका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करेंगे, जिन्होंने कई दृष्टियोंसे अपभ्रंश-साहित्यके विकासमें अपनी शक्ति और समयका व्यय किया है। कवि ब्रमसाधारण इन्होंने कई कथानन्थोंकी रचना की है। इनने अपनी रचनाओंमें न तो अपना परिचय ही अंकित किया है और न रचनाकाल ही । कुन्दकुन्द-आम्नायमें रत्नकोत्ति, प्रभाचन्द्र, पधनन्दि, हरिभूषण, नरेन्द्रकोत्ति, विधानन्दि और ब्रह्मसाधारणके नाम प्राप्त होते हैं। ब्रह्मसाधारण भट्टारक नरेन्द्रकोत्तिके शिष्य थे | ब्रह्मसाधारणने प्रत्येक ग्रंथके पुष्पिकावाक्यमें अपने को नरेन्द्रकीतिका शिष्य कहा है। इनके कयाग्रंथोंको प्रतिलिपि वि० सं० १५०८ को लिखी हुई प्राप्त है । अतएव इनका समय वि० सं० १५०८के पूर्व निश्चित है। गुरुपरम्परासे भी इनका समय वि० को १५वीं शती सिद्ध होता है । इनकी निम्नलिखित रचनाएं प्राप्त हैं १. कोइलपंचमीकहा, २. मउडसत्तमीकहा, ३. रविवयकहा, ४, तियालचक्रवीसीकहा, ५. कुसुमंजलिकता. ६. निसिसत्तमीनयकहा, ७. णिज्झरपंचमीकहा और ८. अणुपेहा । कवि देवनन्दि इनने भी कथा-ग्रन्थोंको रचना कर अपभ्रश-साहित्यको श्रीवृद्धिमें योगदान दिया है। ये देवनन्दि पूज्यपाद-देवनन्दिसे भिन्न हैं और उनके पश्चात्वर्ती हैं। इनका 'रोहिणीविहाणकहा' नामक ग्रन्थ उपलब्ध है। रचनाकी शैलीके आधारपर कविका समय १५वीं शती माना जा सकता है । कवि अल्हू इन्होंने 'अणुवेक्खा' नामक ग्रंथ की रचना कर संसारको असारत्ता, अशुचिता, अनित्यता आदिका स्वरूप प्रस्तुत किया है । आत्मोत्थानके लिए अणुवेक्खाका अध्ययन उपयोगी है। रचनाकी भाषा और शैलीसे कविका समय १६वीं शती प्रतीत होता है। जन्हिगले इन्होंने 'अनुपेहारास' नामक उपदेशप्रद अन्ध लिखा है। इसमें अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अनेकत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, बोधदुर्लभ और धर्म इन बारह भावनाओंका स्वरूपाङ्कन किया है। कविके सम्बन्धमें कुछ २४२ : भार महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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