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दिन चकत्ताशके जलालुद्दीन अकबर बादशाहके शासनकालमें पूर्ण हुई थी । उस समय ढूंढाहाल देशके कच्छपवंशी राजा मानसिंहका राज्य वर्तमान था। मानसिंहको राजधानी उस समय अम्बावती या आमेर थो।। __ कविकी दूसरी रचना वि० सं० १६५० में मानसिंहके शासनमें ही समाप्त हुई थी । अतएव कविका समय वि० सं० को १७वीं शताब्दी निर्णीत है | रचनाएँ
कविको दो रचनाएं उपलब्ध हैं-संतिणाहरिउ और महापुराणकलिका। संतिणाहचरिउमें ५ सन्धियाँ हैं और १६वे तीर्थकर शान्तिनाथका जीवनवृत्त वर्णित है। शान्तिनाथ कामदेव, चक्रवर्ती और तीर्थकर इन तीनों पदोंको अलंकृत करते थे। यह चरित ग्रन्थ वर्णनात्मक शेलोमं लिखा गया है । भाषा सरस और सरल है।
महापुराणकालकामें २७ सन्धियों हैं, जिनमें ६३ शलाकापुरुषोंको गौरवगाथा गुम्फिस है। इसमें तीर्थंकर ऋषभदेवका चरित तो विस्तारके साथ अंकित किया गया है । भरत, बाहुबली, जयकुमार आदिके इतिवृत्त भी विस्तारपूर्वक दिये गये हैं 1 शेष महापुरुषोंके जीवनवृत्त संक्षेपमें ही आये हैं । २३ तीर्थकर, ११ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ बलभद्र और ९ प्रतिनारायणोंके नाम, जन्मग्राम, माता-पिता, राज्यकाल, तपश्चरण आदिका संक्षेपमें वर्णन आया है। इसप्रकार कविने अपने इस पुराणमें शलाकापुरुषोंका जीवनवृत्त निरूपित किया है।
माणिक्यराज १६ वीं शताब्दीके अपभ्रंशकाव्य-निर्माताओंमें माणिक्य राजका महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये बुहसूरा--(बुधसूरा) के पुत्र थे । जायस अथवा जयसवालकुलरूपी कमलोंको प्रफुल्लित करनेके लिए सूर्य थे । इनकी माताका नाम दोवादेवी था। 'णायकुमारचरिउ'को प्रशस्तिमें कविने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है
तहि णिवसइ पंडिउ सत्यखणि, सिरिजयसवालकुलकमलसरणि । इक्खाकुवंस-महियवलि-वरिट्ठ, बहसुरा-गंदणु सुयरिट्छु । उप्पण्णाउ दीया-उयरिखाणु, बुह माणिकुराये बुइहिमाणु | कवि माणिक्यराजने अमरसेन-चरितमें अपनी गुरुपरम्पराका निर्देश करते हुए लिखा है
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २३५