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ता सिस्नु सुभग जगि सहसकित्ति । नेमिचंद हुबो सासनि सुयत्ति । अज्जिका अन्नतिसिरि ले पदेसि । दाभाडालीवाई बिसेसि ।"
कविके पितामहका नाम साह सोल्हा और पिताका नाम खेता था। जाति खंडेलवाल और गोत्र लोडिया था। यह लोवाइणिपुरके निवासी थे। इस नगरमें चन्द्रप्रभ नामका विशाल जिनालय था । इनके दो पुत्र थे-धर्मदास और गोविन्ददास । इनमें धर्मदास बहुत ही सुयोग्य और गृहभार वहन करने वाला था । उसको बुद्धि जैनधर्म में विशेष रस लेती थी। कवि देव-शास्त्र-गुरुका भक्त और विद्या-विनोदी था। विद्वानोंके प्रति उसका विशेष प्रेम था। कविने लिखा है
"खंडेलवाल साल्हा पसंसि । लोहाडिउ खेत्तात्तणि सुसंसि । ठाकुरसी सुकवि णामेण साह, पंडितजन प्रीति वहई उछाह । तह पुत्त पयड जगि जसु मईय, मानिसालोय महि मंडलीय। गुरुयण सुभट गोविंददास, जिगम जुद्धिी धगदः । गंदहु लुवाणिपुर लोणविंद, गंदहु जिण सासण जगि जिणिदु।
चंदप्पहु जिनमंदिर विशाल, गंदह पाति मंडल सामिसाल।" प्रशस्तिसे अवगत होता है कि कविका वंश राजमान्य रहा है। कविने विशालकीतिको अपना गुरु बताया है। पर विशालकीति नामके कई भट्टारक हए हैं । अतः यह निश्चय कर सकना कठिन है कि कौन विशालकोत्ति इनके गुरु थे। एक विशालकोत्ति वे हैं, जिनका उल्लेख भट्टारक शुभचन्द्रकी गुरुविलीमें ८०वें नम्बरपर आया है और जो वसन्तकोत्तिके शिष्य और शुभकात्तिके गरु थे। दसरे विशालकत्ति वे हैं, जो भटारक पद्मनन्दिके पट्टधर थे, जिनके द्वारा वि० सं० १४७०में मूर्तियों को प्रतिष्ठा हुई थी। तीसरे विशालकीत्ति वे हैं, जिनका उल्लेख नागौरफे भट्टारकोंकी नामावलीमें आया है, जो धर्मकीत्तिके पट्टधर थे, जिनका पट्टाभिषेक वि० सं० १६०१में हुआ था।
'महापुराणकलिका में भी कविने अपनेको विशालकीत्तिका शिष्य कहा है और नेमिचन्द्रका भी आदरपूर्वक स्मरण किया है। अतएव उपलब्ध सामग्रोके आधारपर इतना ही कहा जा सकता है कि कवि शाह ठाकूर खंडेलवाल वंशमें उत्पन्न हुए थे और इनके दादाका नाम सोहा और पिताका नाम खेत्ता था। इनके गुरुका नाम विशालकोत्ति था । स्थितिकाल
कविको दो रचनाएँ उपलब्ध हैं-१. संतिणावरित और २. महापुराणकलिका | संतिकारिउकी रचना वि० सं० १६५२ भाद्रपद शुक्ला पंचमोके २३४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा