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________________ F i ! अनन्तर नेमिनाथका अकारण पशुओंको घिरा हुआ देखकर और सारथी से अतिथियोंके लिए वर्षकी बात सुनकर विरक्त हो रैवन्तगिरि पर जाना वर्णित है । राजमतीका विरह और उसका तपस्विनीके रूपमें आत्म-साधना करन्दा भी है वल्ह वियक्खणु सखीय बंषण | मूल संघ मुख मंडिया पद्मनंदि सुपसाइ, बहि बसंतु जु गावहि सो सखि रलिय कराइ ॥ नेमिनाथवारहमासा - १२ महीनोंमें राजोमतिने अपने उद्गारोंको व्यक्त किया है । चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आषाढ़ आदि मास अपनी विभिन्न प्रकारको विशेषताओं और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण राजीमतिको उद्वेलित करते हैं और वह नेमिनाथको सम्बोधित कर अपने भावोंको व्यक्त करती है। कृति सरस और मार्मिक है । कवि शाह ठाकुर कवि शाह ठाकुरने 'संतिणाहचरित' की प्रशस्ति में अपना परिचय दिया है । अपनी गुरुपरम्परामें बताया है कि भट्टारक पचनन्दिकी आम्नायमें होने वाले भट्टारक विशालकीर्तिके वे शिष्य थे। मूलसंघ नन्द्याम्नाय, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगणके विद्वान थे। कविने भट्टारक पद्मनन्दि, शुभचन्द्रदेव, जिनचन्द्र, प्रभाचन्द्र, चन्द्रकीति, रत्नकीर्ति, भुवनकीति, विशालकीत्ति, लक्ष्मीचन्द्र, सहस्रकीर्ति, नेमिचन्द्र, आर्यिका अनन्तश्री और दामाडालोबाईका नामोल्लेख किया है । कविने यहाँ दो परम्पराके भट्टारकों का उल्लेख किया है-अजमेरपट्ट और आमेरपट | भट्टारक विशालकीर्ति अजमेर-शाखाके विद्वान थे और वे भट्टारक चन्द्रकीर्त्तिके पट्टधर थे । विशालकीति नामके अनेक विद्वान् हुए हैं। "सिरि पद्मनन्दि भट्टारकेण पढछु सुतासु सुभचन्ददेव । जिणचंद भट्टारक सुभगसेय । सिरि पहाचंद पापाटि सुमति । परिभणहु भट्टारक चंदकित्ति । तहू वारह किय सुकहा-बंधु । सुसहावकरण जणि जेम बंधु । आचारि रि हुउ रयणकिति । तहु सोसु भलो जग भुवणकिति । X X X X दिक्खा - सिक्खा-गुण-गद्दणसार । सिरिविशाल कत्ति विद्या- अपार | तहु सिखि हूवउ लक्ष्मी सुचंद भवि बोहण सोहण भुवर्णमधु । आचार्यस्य काव्यकार एवं लेखक : २३३
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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