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सन्तोष
बाइयो सोलु सुषम्पु समकितु ग्यान चारित संचरो, वैरागु तप करुणा महाव्रत खिया चिति संजय थिरो । अज्जउ सुमइउ मुत्ति उपसमु धम्मु सो आकिचिणो, इन मेलि दलु सन्तोषराजा लोभ सिव मंडक रणो ॥ चेतमपुद्गल बसाल
इसका दूसरा नाम अध्यात्म घमाल भी है । यह भी एक रूपक काव्य है । कुल १३६ पद्म हैं। इसमें पुद्गलको संगतिसे होने वाली चेतन-विकृत परिणतिका अच्छा वर्णन किया है। चेतन और पुद्गल का बहुत ही रोचक संवाद आया है । कवि की कविताका नमूना निम्न प्रकार हैजिउ ससि मंडणू रयणिका दिनका मंउणु तिम चेतनका मंडणा, यहू पुद्गल
तू
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सुहु, जतनु करं तंबडी, तिव तिव
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कोइ कलेवरु वसि जिउ जिउ वाचे
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भाणु ।
जांणु ॥
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तिहि जाइ । अति करवाइ ॥
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कायाकी निन्दा करइ, आपु न देखइ जोइ | जिउ जिउ भीजह कांवली, तिउ तिउ भारी होइ ।। "
टंडाणागीत - यह उपदेशात्मक रचना है। इसका मुख्य उद्देश्य संसार के स्वरूपका चित्रण कर उसके दुःखोंसे उन्मुक्त करना है। यह मोही प्राणी अनादिकाल से स्वरूपको भूलकर परमें अपनी कल्पना करता आ रहा है । इसी कारण उसका परवस्तुओंसे अधिक राग हो गया है । कविने अन्तिम पदमें आत्माको सम्बोधन कर आत्मसिद्धि करनेका संकेत किया है। कविकी यह रचना बड़ी ही सरल और मनोहर है ।
भुवनको तिगीत - इसमें पाँच पद्य हैं, जिनमें भट्टारक भुवनकीतिके गुणोंकी प्रशंसा की गई है। भुवनकीति अट्ठाइस मूलगुण और १३ प्रकारके चारित्रका पालन करते हुए मोहरूपी महाभटको लाइन करनेवाले थे । कविने इस कृति में इन्हीं गुणोंका वर्णन किया है।
नेमिनाथ वसन्त - इसमें २३ पद्य हैं । वसन्त ऋतुका रोचक वर्णन करनेके
१. अनेकान्द्र वर्ष १६, किरण ६, १९६४ फरवरी १० २५४ - २५६ ।
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२३२ : तीर्थंकर महावीर और उनको बाचार्य-परम्परा