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अतएव कविका समय विक्रमको १६वीं शती है। कविने इस ग्रन्थको रचना महाभव्य कामराजके पुत्र पंडिस देवपालको प्रेरणासे की है। बताया है कि वणिपुर या वणिकपुर नामके नगरमें खण्डेलवाल वंशमें कडि (कौड़ी) नामके पंडित थे। उनके पुत्रका नाम छोतु था, जो बड़े धर्मनिष्ठ और आचारवान थे । वे श्रावकको ११ प्रतिमाओंका पालन करते थे। यहीपर लोकमित्र पंडित खेता था । इन्हींके प्रसिद्ध पुत्र कामराज हुए। कामराजकी पत्नीका नाम कमलश्री था। इनके तीन पुत्र हुए-जिनदास, रयणु और देवपाल । देवपालने वर्धमानका एक चैत्यालय बनवाया था, जो उत्तुंग ध्वजाओंसे अलंकृत था। इसी देवपालकी प्रेरणासे अजितपुरण लिखा गया है।
इस ग्रन्थको प्रथम सन्धि नयम कड़वकम जिनसेन, अकलंक, गुणभद्र, गृद्धपिच्छ, प्रोष्ठिल, लक्ष्मण, श्रीधर और चतुर्मुखके नाम भी आये हैं। ___ इस ग्रन्थमें कविने द्वितीय तीर्थकर अजिसनाथका जीवनप्स गुम्फित किया है। इसमें १० सन्धियाँ हैं। पूर्वभवावलोके पश्चात अजितनाथ तीर्थकरके गर्भ जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण कल्याणकोंका विवेचन किया है। प्रसंगवश लोक, गुणस्थान, श्रावकाचार, श्रमणाचार, द्रव्य और गुणोंका भी निर्देश किया गया है।
कवि असवाल कवि असवालका बंश गोलाराड था। इनके पिताका नाम लक्ष्मण था । इन्होंने अपनी रचनामें मूल संघ बलात्कारगण के बाचार्य प्रभाचन्द्र, पचनन्दि, शुभचन्द्र और धर्मचन्द्रका उल्लेख किया है, जिससे यह ध्वनित होता है कि कवि इन्हींको आम्नायका था। कविने कूशात देश में स्थित करहल नगर निवासी साहु सोणिगके अनुरोधसे लिया है। ये सोणिग यदुवंशमें उत्पन्न हुए थे। ___ ग्रन्थ-रचनाके समय करहलमें चौहानवंशी राजा भोजरायके पुत्र संसारचन्द (पृथ्वीसिंह) का राज्य था। उनकी माताका नाम नाइक्कदेवी था। यदुवंशो अमरसिंह भोज राजके मंत्री थे, जो जैनधर्म के अनुयायी थे । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समरसिंह, नक्षत्रसिंह और लक्ष्मणसिंह थे। अमरसिंहकी पत्नीका नाम कमलश्री था। इसके तोन पुत्र हुए-नन्दन, सोणिग और लोणा साहू । लोणा साहू जिनयात्रा, प्रतिष्ठा आदिमें उदारतापूर्वक धन व्यय करते थे।
मल्लिनाथचरितके कर्ता कवि हल्लकी प्रशंसा भी असवाल कविने की है। लोणा साहूके अनुरोधसे ही कवि असवालने ‘पासणाहरिउ'को रचना अपने २२८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा