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________________ ज्येष्ठ भ्राता सोणिगके लिये कराई थी। सन्धि-वाक्यमें भी उक्त कथनको पुष्टि होतो है। ___ "इय पासणाहरिए आयमसारे सुवग्गचहुरिए बुहअसवालविरइए संघाहिपसोणिगस्स कपणाहरणसिरिपासणाहणिव्वाणगमणो णाम तेरहमो परिच्छेओ सम्मतो।" स्थितिकाल कविने 'पासणाहवार को प्रशस्तिमें इस प्रन्यका रचनाफाल कित किया है इगवीरहो णिवुई कुच्छराई, सत्तरिस? चउसयवत्थराई । पच्छई सिरिणियविक्कमगयाई, एउणसीदीसहुँ चउदहसयाई । भादव-तम-एयारसि मुणेहु, परिसिक्के पूरिउ गंथु एह। पंचाहियवीससयाई सुत्तु, सहसई चयारि मडाहिं जुत्तु । अर्थात् वि० सं० १४७९ भाद्रपद कृष्णा एकादशीको यह ग्रन्थ समाप्त हुआ। ग्रन्थ लिखने में कविको एक वर्ष लगा था । प्रशस्तिमें वि० सं० १४७१ भोजराजके राज्यमें सम्पन्न होनेवाले प्रतिठोत्सवका भी वर्णन आया है। इस उत्सव में रत्नमयी जिनबिम्बोंको प्रतिष्ठा की गई थी। प्रशस्तिमें जिस राजवंशका उल्लेख किया है उसका अस्तित्व भी वि० सं० की १५वीं शताब्दीमें उपलब्ध होता है। अतएव कविका समय विक्रमकी १५ वीं शताब्दी है। कविको एक ही रचना 'पासणाहचरित' उपलब्ध है। इसमें २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथका जीवन-चरित अकित है । कथावस्तु १३ सन्धियोंमें विभक्त है। कविने इस काव्यमें मरुभति और कमठके जीवन का सुन्दर अकन किया है। सदाचार और अत्याचारकी कहानी प्रस्तुत की है। प्रत्येक जन्म में मरुभूतिका जोव कमठके जीवके विद्वेषका शिकार होता है । व.मठका जीव मरुभसिके जीवके समान ही इस लोक में उत्पन्न होता है, किन्तु अपने दुष्कृत्यक कारण तिर्यञ्चम जन्म ग्रहणकर नरकवास भोगता है। उसे छठवें भव में पूनः मनुष्य-योनिकी प्राप्ति होतो है । इस प्रकार मरुभूति और कमठका बर-विरोध १० जन्मों तक चलता है। १० वें भवमें मरुभूतिका जोच पार्श्वनाथक रूपमें जन्म ग्रहण करता है। पार्व जन्मके पश्चात् अपने बल, पौरुष एवं बुद्धिका परिचय देते हैं। और ३० वर्षको आयु पूर्ण होनेपर माघ शुक्ला एकादशाका दीक्षा ग्रहण करते हैं। थे तपश्चरण कर केवलज्ञान लाभ करते हैं और सम्मेद आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २२९
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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