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उपभोग किया और षट्खण्डभूमिको अपने अधीन किया । अन्तमें इन्द्रियविषयोंको दुःखद अवगत कर देह-भोगोंसे विरक्त हो दिगम्बर-दीक्षा धारण कर तपश्चरण किया। समाधिरूपी चक्रसे कर्मशत्रुओंको विनष्टकर धर्मचक्रो बने । विविध देशोंमें विहार कर जगत्को कल्याणका मार्ग बताया और अघातिया क्रमौको नष्ट कर मोक्ष प्राप्त किया।
विजयसिंह कवि विजयसिंहने अजितपुराणकी प्रशस्तिमें अपना परिचय दिया है। बताया है कि मेरुपुरमें मेरुकीतिका जन्म करमसिंह राजाके यहां हुआ था, जो पचायतीपुरवालवंशके थे। कविके पिताका नाम दिल्हण और माताका नाम राजमती था | कविने अपनी गुरुपरम्पराका निर्देश नहीं किया है। सन्धिके पुष्पिका-वाक्यसे यह प्रकट है कि यह ग्रंथ देवपालने लिखवाया था । ___"इय सिरिअजियणाहतित्ययरदेवमहापुराणे धम्मत्थ-काम-मोक्ख-चउपयत्य पहाणे सुकइणसिरिविजयसिंहबहविरइए महाभब्व-कामरायसुय-सिरिदेवपालविवहसिरसेहरोबमिए दायार-गुणाण-कित्तणं पुणो मगह-देसाहिबवण्णणं णाम पढमों संधीपरिछेओ समत्तो n" ।
कवि विजयसिंहकी कविता उच्चकोटिकी नहीं है । यद्यपि उनका व्यक्तित्व महत्त्वाकांक्षीका है, तो भी वे जीवन के लिए आस्था, चरित्र और विवेकको आवश्यक मानते हैं। स्थितिकाल ___कविने अजितपुराणको समाप्ति वि० सं० १५०५ कात्तिकी पूर्णिमाके दिन की है। इसी संवत्की लिखी हुई एक प्रति भोगांवके शास्त्रभण्डारमें पाई जाती है । इस प्रतिकी लेखन-प्रशस्तिमें बताया है____ "संवत् १५०५ वर्षे कातिक सुदि पूर्णमासो दिने श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे भट्टारकश्रीपश्यनंदिदेवस्तत्पट्ट भट्टारकश्रीशुभचन्द्रदेवः तस्य पट्टे भटटारकश्रीजिनचन्द्रदेवः तस्याम्नाये श्रीखंडेलवालान्वये सकलग्रंथार्थप्रवीण पंडितकउडि: तस्य पुत्र: सकलकलाकुशल: पण्डितछीत (र) तत्पुत्रः निरवद्यश्रावकाचारधरः पंडितजिनदासः, पंडितखेता तत्पुत्रपंचाणुव्रतपालकः पण्डितकामराजस्तद्भार्या कमलथी तत्पुत्रास्त्रयः पण्डितजिनदासः, पंडितरतनः देवपाल: एतेषां मध्ये पंडितदेवपालेन इदं अजितनाथदेवचरितं लिखापितं निजज्ञानावरणीयकर्मक्षया), शुभमस्तु लेखकपाठकयोः ।'
-जैन सि० भा. भा० २२, कि० २। आचार्मतुल्य काष्यकार एवं लेखक : २२७