________________
कविने इस ग्रन्थमें अपनेसे पूर्ववर्ती अकलंक, पूज्यपाद, नेमिचन्द्र सैद्धान्तिक, चतुर्मुख, स्वयंभू, पुष्पदन्त, यश कीत्ति, रइधू, गुणभद्रसूरि और सहणपालका स्मरण किया है। रइधका समय वि०की १५वीं शतीका अन्तिम भाग अथवा १६वीं शतीका प्रारंभिक भाग है । अतएव कविका समय पूर्व आचार्योंके स्मरणसे भी सिद्ध हो जाता है । लिखा है--
अकलंकसामि सिरिपायपूय, इंदाइ महाकइ अटुहूय । सिरिणेमिचंद सितियाई, सिद्धससार मुणि ण विवि ताई। चउमुहु-सुर्य भु-सिरिपुप्फयंतु, सरसइ-णिवासु गुण-गण-महंतु । जसकित्तिमुणीसर जस-णिहाणु, पंडिय रइघूकइ गुण अमाणु । गुणभद्दसूरि गुणभद्द ठाणु, सिरिसहणपाल बहुबुद्धि जाणु ।
रचना
कवि द्वारा लिखित 'संतिणाहचरिज'की प्रति वि० सं० १५८८ फाल्गुण कृष्णा पंचमीको लिखी हुई उपलब्ध है।
प्रस्तुत ग्रंथकी रचना योगिनीपुर (दिल्ली) निवासी अग्रवालकुलभूषण गर्गगोत्रीय साह भोजराजके पांच पुत्रोंमेंसे ज्ञानचन्दके पुत्र साधारण थावककी प्रेरणासे की गई है। भोजराम पुत्र नान खमचन्द, शालपन्द, श्रीचन्द, राजमल्ल और रणमल बताये गये हैं। संथकी प्रशस्तिमें कविने साधारण श्रावकके बंशका परिचय कराया है। बताया है कि उसने हस्तिनागपुरके यात्रार्थ संघ चलाया था और जिनमंदिरका निर्माण कराकर उसकी प्रतिष्ठा भी कराई थी। भोजराजके पुत्र ज्ञानचंदकी पत्नी का नाम 'सौराजही', था जो अनेक गुणोंसे विभूषित भी | इसके तीन पुत्र हुए, जिनमें मारंगसाह और साधारण प्रसिद्ध हैं। सारंगसाहूने सम्मेदशिखरकी यात्रा की थी। इसको पत्नीका नाम तिलोकाही' था । दूसरा पुत्र साधारण बड़ा विद्वान् और गणी था । उसने शत्र जयको यात्राकी थी। इसकी पत्नीका नाम 'सीचाही' था। इसके चार पुत्र हुए-अभयचन्द, मल्लिदास, जितमल्ल और सोहिल्ल | इनकी पत्नियों के नाम चदणही, भदासही, समदो और भीखणहा। ये चागे हो पतिव्रता और धमौनष्ठा श्री । इस प्रकार कविने अथ-रचनाके प्रकका परिचय प्रस्तुत किया है।
'संतिणहिचरिउ' में १६वें तीर्थकर शान्तिनाथ चक्रवर्तीका जीवनवृत्त गुम्फित है । कथा-वस्तु १३ परिच्छेदों में विभक्त है । पद्य-प्रमाण ५०००के लगभग है ।
शान्तिनाथ चक्रवर्ती, कामदेव और धर्मचक्रो थे। कविने इनकी पूर्वभवावलीके साथ वर्तमान जीवनका अंकन किया है । चक्रवर्तन सभी प्रकारक वैभवोंका २२६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा