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________________ इस कुटुम्ब का परिचय नागदेवके संस्कृत-मदनपराजयसे भो प्राप्त होता है। नागदेवने अपना मदनपराजय हरिदेवके इस अपभ्रश-मदनपराजयके आधार पर हो लिखा है। वे चंगदेवके वंशमें सातवीं पीढ़ोमें हुए हैं। परिचय नम्न प्रकार है... यः शुद्धसोमकुलपविकासनाळ जातोऽथिनां मुग्तरु(वि चंगदेवः । तन्नन्दनो टिरसत्कवि-नागसिंहः तस्माद्भिषग्जनपति वि नागदेवः ।।सा तज्जावु भी सुभिषजाविह हेमरामौ रामात्प्रियंकर इति प्रियदोऽथिनां यः । तज्जश्चिकित्सितमहाम्बुधिपारमाप्तः श्रीमल्लुगिज्जिनपदाम्बुजमत्तभृङ्गः॥३॥ तज्जोऽहं नागदेवाख्यः स्तोकज्ञानेन संयतः । लन्दोऽलंकारकाव्यानि नाभिधानानि वेम्यहम् ॥ ४॥ कथाप्राकृतबन्धेन हरिदेबेन या कृता। वक्ष्ये संस्कृतबन्धेनं भव्यानां धर्मवृद्धये ।।५।। अर्थात पृथ्वोपर पवित्र सोमकूलरूपी कमलको विकसित करनेके लिये सूर्यरूप और याचकोंके लिए कल्पवृक्षस्वरूप त्रंगदेव हुए । इनके पुत्र हरि हुए, जो असत्कविरूपी हस्तियोंके लिए सिंह ये | उनके पुन वैद्यराज नागदेव हुए । नागदेवके हेम और राम नामके दो पुत्र हुए और ये दोनों ही अच्छे वैद्य थे । रामके पुत्र प्रियंकर हुए, जो याचकोंके लिा प्रिय दानी थे। प्रियंकरके पुत्र मल्ल मित्त हए, जो चिकित्सामहोदधिके पारगामी बिद्वान तथा जिनेन्द्र के चरणकमलोंके मत्त भ्रमर थे। उनका पुत्र में भागदेव हआ, जो अल्पज्ञानी है और छन्द, अलंकार, काब्य तथा शब्दकोशका जानकार नहीं हैं। हरिदेवन जिस कथाको प्राकृत-बन्धमें रचा था, उसे ही में भव्योंको धर्मवृद्धिके हेतु संस्कृतमें लिख रहा हूँ। चंगदेवकी वंशावलो निम्नप्रकार प्राप्त होतो है चंगदेव किंकर कृष्ण हरिदेव द्विजपति राघव नागदेव (वद्यराज} (वैद्यराज) राम (बंद्यराज) प्रियंकर (दानी) मल्लुगित (बैद्यराज) नागदेव आचार्यतुल्य वाव्यकार एवं लेखक : २१.
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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