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इस वंशावलोसे कविके जीवन-परिचयका बोध हो जाता है । पर उसके स्थितिकालके सम्बन्धमें कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं होती। स्थितिकाल
'मयणपराजय चरिज' की कथावस्तुका आधार शुभचन्द्रकृत ज्ञानार्णव है और परम्परानुसार सुभचन्द्रका समय भोजदेवके समकालीन माना जाता है । ज्ञानार्णवको एक प्राचीन प्रत्ति पाटणके शास्त्रमण्डारमें वि० सं० १२४८की लिखी हुई प्राप्त हुई है । अतः ज्ञानार्णवका रचनाकाल ९वीं शतीसे १२वीं शतीके बीच सिद्ध होता है। अतएब 'मयणपराजयरिज'की रचनाकी पूर्वावधि यही माननी चाहिए। इससवा तिनी हस्तलिखित दिगो आधारपर किया जा सकता है। 'सस्कृतमदनपराजयको एक प्रतिका लेखनकाल वि० सं० १५७३ हैं और अपभ्रंश 'मयणपराजय रउको एक प्रति वि० सं० १६०८ और दूसरी वि. स. १६५४ को है । अत्तएव कवि हरिदेवका समय नागदेवसे छठी पोढ़ी पूर्ण होनेके कारण कम-से-कम १५० वर्ष पहल हाना चाहिए । इस प्रकार नागदेवका समय १३वी-१४वीं शताब्दी सिद्ध हाता है।
पं० परमानन्दजीने जयपुरके तरापंथी बड़े मन्दिरके शास्त्रभण्डारमें वि. सं० १५५१ मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी गुरुवारको लिखी हुई प्रतिका निर्दश किया है तथा आमेरभंडारको प्रति वि० सं० १५७६ की लिखी हुई बताई है। और उन्होंने भाषा-शैली आदिके आधारपर हरिदेवका समय १४वी शताब्दोका अन्तिम चरण बताया है ।'
डॉ. हीरालालजी जेनने हरिदेवका समय १२वीं शतीसे १५वीं शतीके बीच माना है।
रचना
कविको एक ही रचना 'मयणपराजयारउ' उपलब्ध है। इस ग्रंथमें दो परिच्छेद हैं। प्रथम परिच्छेदमें ३७ और दूसरेमें ८१ इस प्रकार कुल ११८ कड़वक है । यह छोटा-सा रूपक खण्डकाव्य है । कविने इसमें मदनको जीतनेका सरस वर्णन किया है। कामदेव राजा, भोह मंत्री, अहंकार, अज्ञान आदि सेनापतियोंके साथ भावनगरमें निवास करता था । चारित्रपुरके राजा जिन राज उसके शत्रु थे, क्योंकि वे मुक्ति रूपी लक्ष्मीसे अपना विवाह करना चाहते थे। कामदेवने १. जैनग्रंथप्रशस्सिसंग्रह, द्वितीय भाग, दिल्ली, प्रस्तावना, पृ० ११४ 1 २. मयणपराजयचरिउ, भारतीयज्ञानपीठ काशी, प्रस्तावना, पृ० ६१ । २२० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा