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________________ ६. नरफउतारादूग्धा रसकथा ७. णिदुखसत्तमीकहा-निदुःखसप्तमोकथा ८. मउडसत्तमीकहा-मुकुटसप्तमोकथा ९. पुप्र्फजलीकहा-पृष्पांजलिकथा १०. रयणत्तयवयकहा-रत्नत्रयव्रतकथा ११. दहलक्खणवयकहा-दशलक्षणव्रतकथा १२. अणंतत्रयकहा- अनंतव्रतकथा १३. लाद्धविहाणकहा--लब्धिविधानकथा १४. सालहकारणवयकहा---पोडशकारणव्रत कथा १५. सुगंधदमीकहा-सुगंधदशमीकथा इन व्रत-कथाओम ब्रसका स्वरूप, आचरण-विधि और उनका फल प्राप्ति प्रतिपादित की गया है | आत्मशोधनान लिय प्रतोंका नितान्त आवश्यकता है, क्योंकि आत्मशद्धि के बिना लाल्याण सभव नहीं है। पाक्षिकश्रावक-कथा और अनन्तव्रत-कथा ये दा काथा-ग्रन्थ तो ग्वालियरनिवासी संघपति साहू उद्धरणके जिनमंदिरम निवास करत हा साहसारंगदेवके पत्र देवदासको प्रेरणासे रचे गये हैं। और अनन्तव्रतकथा, पुष्पांजलिव्रतकथा और दशलक्षणवतकथा ये तीन कथाकृतियां ग्वालियरनिवासी जयसबालबंशा चौधरी लक्ष्मणसिंहके पुत्र पं० भीमसेनके अनुरोधसे लिखी गई हैं। निदुःख सप्तमीकथा गोपाचलवासी साह बीधाके पुत्र सहजपालके अनुरोधसे लिखी गई है। शेष कथा-ग्रन्थ धार्मिक भावनासे प्रेरित होकर लिखे हैं । नामानुसार कथाओंमें व्रतोंका स्वरूपादि वणित है। हरिदेव 'मयणपराजयचरिउ' के रचयिता हरिदेवने नन्थके आदिमें अपना परिचय दिया है जिससे यह ज्ञात होता है, कि इनके पिता का नाम चंगदेव और माताका नाम चित्रा था । इनके दो बड़े भाई थे-किकर और कृष्ण । किकर महागुग्गवान् तथा कृष्ण स्वभावतः निपुण थे । इनके दो छोटे भाई थे, जिनके नाम द्विजवर और राघव थे । कविने लिखा है चंगरवहु णविर्याजणपयहु तह चित्तमहासहिं पढमु पुत्तु किंकर महागण । पुण बोयउ कण्हु हुउ जेण लङ्घ ससहाउ णियपुण ।। हरि तिज्जउ कइ जाणि यइ दियवरु राघउ वेइ । ते लहया जिणपय धुर्णाहं पावह माणु मलेइ ।।२।। २१८ : तोर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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