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________________ T । रूपी महागजको तर्जनाको सहन करनेवाला एवं भव्यजनोंको उद्बोधित करने वाला कहा है । तहो चरपट्टु बइरिउ अज्जमु । घरिय चरितायरणु संसंजमु ॥ गुरु गुणगनवणि पापभूषण ! वयण-पउत्ति-जणिय जणतूस || कयकामाइय- दोस - विसज्जरपु । दंसिय-माण महागय तज्जणु ॥ भविषण-मण- उपाय - बोहणु । सिरिगुणभद्दमहारिस सोहण || - सम्मइ० - १०|३०|२१-२४ गुणभद्र प्रतिष्ठाचार्य भी थे। मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) के जैन मन्दिरों में कुछ मूर्तियों एवं यंत्रों पर लेख उत्कीर्णित हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि वे प्रतिष्ठाचार्य थे।' गुणभद्रका स्थितिकाल उनकी गुरुपरम्परा और समकालीन राजवंशोंके आधारपर निर्णीत किया जा सकता है । इन्होंने ग्वालियरके तोमरवंशी राजा डूंगरसिंहके पुत्र की त्तिसिंह या कर्णसिंहके राज्यकालमें अपनी रचनाएँ लिखी हैं । महाकवि रद्दधूने गुणभद्रका उल्लेख किया है। अतः गुणभद्रका समय रधूके समकालीन या उनसे कुछ पूर्वं होना चाहिए । कारञ्जाके सेनगण-भण्डारकी लिपि प्रशस्ति वि० सं० १५१० वैशाख शुक्ला तृतीयाकी लिखी हुई है, जो गोपाचल में डूंगरसिंहके राज्यकाल में भट्टारक गुणभद्रकी आम्नायके अग्रवालवशी गगंगोत्रीय साहु जिनदासने लिखाई थी । अतएव कवि गुणभद्रका समय १५वीं शतीका अंतिम पाद या १६वीं शतीका प्रथम पाद होना चाहिए । रचनाएं भट्टारक गुणभद्रने १५ कथा - ग्रंथोंको रचना की है, जो निम्न प्रकार हैं१. सवणवा र सिविहाण कहा ( श्रावणद्वादशी - विधान-कथा) २. पक्वइकहा ( पाक्षिकव्रत कथा ) ३. आयासपंचमीकहा - आकाशपंचमी कथा ४. चंदायणवयकहा- चन्द्रायण व्रतकथा ५. चंदणछट्ठीकहा- चन्दनषष्ठी कथा १. सं० १५२९ सास सुदी ७ बुधे श्रीकाष्ठासंचे भ० श्रीमलयकोत्ति भ० श्री गुणभद्रा. प्रतिमालेखसंग्रह (जैनसिद्धान्तभवन, आरा, मनाये अग्रोकान्वये मित्तलगोत्र वि० सं० १९९४) ५० ८, १४ । २. अनेकान्त, वर्ष १४, किरण १० पृ० २९६ 1 आषार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक २१७
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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