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लिखा है। दूसरे ग्रंथ वढमाणचरिउ' भी मल्लिनाथकाव्यसे एकाध वर्ष: आगे-पीछे लिखा गया है। रचनाएँ
जयमित्रलको दो रचनाएं उपलब्ध हैं—'वढमाणचार उ' और 'मल्लिणाहकन्व' । 'वडढमाणचरिउ' का दूसरा नाम 'सेणियचरिउ' भी मिलता है। इस काव्यमें ११ सन्धि या परिच्छेद बताये गये हैं । पर प्रारंभकी 'सन्धियाँ उपलब्ध सभी पाण्डुलिपियों में नहीं मिलती हैं, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रंथको छठी सन्धि ही प्रथम सन्धि है। इस ग्रंथमें अन्तिम तीर्थंकर वर्द्धमान महावीरका जीवनचरित अंकित है। साथ ही उनके ममयमें होने वाले मगधक शिशुनागवंशी सम्राट् बिम्बसार या णिकको जीवनगाथा भी अंकित है । यह राजा बड़ा प्रतापी और राजनीतिबाशाल था । इसः सनापति जम्बू कुमारने केरल के राजा मृगांकपर विजय प्राप्त कर उसकी पुत्री चिलावतोसे श्रेणिकका विवाह-सम्बन्ध करवाया था। इसकी पट्ट-पहिषी चेटककी पुत्री नेलना श्री। चेलना अत्यन्त धमात्मा और पतिव्रता थी। वैगिकका जनधमंकी और लानका श्रेय चेतनाको है । श्रेणिक तीर्थकर महाबीरके प्रमुख श्रोता थे। यह ग्रंथ देव रायके पुत्र संघाधिप हालिबम्मक अनुराधसे रचा गया है ।
दूसरी रचना 'मल्लिणाहकच्च' है। इसम १९व तीर्थकर माल्लनाथका जानवचारत अंकित है। इसकी प्रति आमेर-शास्त्र-भण्डारम भी अपूर्ण है। ग्रंथको रचना कविने पृथ्वी नामक गजाके गज्य में स्थित साह आल्हाके अनुगबस को है । आल्हा साहुके चार पुत्र थे, जिनका नाम बाह्य साहु, तुम्बर, २सणऊ और गल्हग थे । इन्होंने ही इस काव्य-ग्रंथको लिखवाया है।
गुणभद्र
काष्ठासंघ माथुगन्वयके भट्टारक मुगभद्र मायकीतिक शिष्य थे। और भदायक यशःकत्तिके शिष्य थे। घ कथा-साहित्यके विपक्ष माने गये हैं। गणभद्रका स्मरण महाकवि रइधूने भी किया है। साथ ही नजपाल' और महिन्दुने २ भी किया है। इधूने इन्हें चरित्रवे आचरणम धोर, संयमी, गणिजनोंके गरु, मधुरभाषी, प्रवचन सबको सन्तुष्ट करनेवाला, जितन्द्रिय, मान१. गुणभद्रु-महामइमहमृगोरा । जिणसंगहोमंडणु पंचमीसु ।
-रांभवणाहारउ, ११२१५-७ २. गुणभहरिगुणभठाणु । ----मंतिणाहार उ—१।५। २१६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा