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इनके गुरु पद्मनन्दि भट्टारक थे। ये मूलसंघ बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छके विद्वान थे। भट्टारक प्रभाचन्द्र के पट्टधर थे। परनन्दि अपने समयके यशस्वी लेखक और संस्कृति-प्रचारक हैं। गर्वावलोमें पद्मनन्दिको प्रशंसा करते हुए। लिखा है
श्रीमत्प्रभाचन्द्रमुनींद्रपट्टे शश्वत्प्रतिष्ठः प्रतिभा-गरिष्ठः । विशुद्ध-सिद्धान्तरहस्य-रत्न-रत्नाकरो नंदतु पानंदी ॥२८॥
जैन सिद्धन्तभास्कर भाग १, किरण ४, पृ० ५३ दिल्लोमें वि० सं० १२९६ भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशीको रलकीत्ति पट्टारूढ़ हुए। ये १४ वर्षों तक पट्टपर रहे। रत्नकीत्तिके पट्टपर वि० सं० १३१० पौष शुक्ला पूर्णिमाको भट्टारक प्रभाचन्द्रका अभिषेक हुआ । पश्चात् वि० सं० १३८५ पौष शुक्ला सप्तमाको प्रभाचन्द्रके पट्ट पर पद्मभन्दि आसीन हुए। इन्हीं पानन्दिके शिष्योंमें जयमित्रहल भी सम्मिलित थे। ___श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीने अपने प्रशस्ति-संग्रहको भूमिकामें एक घटना उद्धृत की है। बताया है कि पार्श्वनाथचरितके कर्ता कवि अग्रवाल ( सं० १४५९) ने अपने ग्रंथकी अन्तिम प्रशस्तिमें सं० १४७१की एक घटनाका उल्लेख करते हुए लिखा है कि करहलके चौहानवंशी राजा भोजराज थे। इनकी पत्नीका नाम माइक्कदेवी था। उससे संसारचन्द या पृथ्वीराज नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसके राज्यमें सं० १४७१ माघ कृष्णा चतुर्दशी शनिवारके दिन रत्नमयी जिन-बिम्बकी स्थापना की गयी। उस समय यदुवंगी अमरसिंह भोजराजके मंत्री थे। उनके पिताका नाम ब्रह्मदेव और माताका नाम पद्मलक्षणा था । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समर्रासिंह, नक्षत्रासिंह, और लक्ष्मणसिंह थे। अमरसिंहकी पत्नी कमलश्री पातिव्रत्य और शीलादि गुणोंसे विभूषित थी। उसके तीन पुत्र हुए--नन्दन, सोना साहु. लोणा साहु । इनमें लोणा साहू धार्मिक कार्यों में विपुल धन खर्च करते थे । इन्होंने कवि जयमित्रहलको प्रशंसा की है। अतः जमित्रहलका समय भट्टारक प्रभाचन्द्र पट्टकाल है।
कवि हरिचन्द या जमिश्रहलका समय विक्रमको १५वों शती है। यतः जयमित्रहलने अपना मल्लिनाथकाव्य विक्रम सं० १४७१ से कुछ समय पूर्व
१. जैन-ग्रंथ-प्रशस्तिसंग्रह, द्वितीय भाग, बोरसेवामंदिर. २१ दरियागंज, दिल्ली
प्रस्तावना, पृष्ठ ८६ ।
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २१५