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१४४५ तक राज्य किया है । अतएव स्पष्ट है कि भद्रारक प्रभाचन्द्र वि० सं० १४१६ से कुछ समय पूर्व भट्टारकपदपर प्रतिष्ठित हुए होंगे। इस आलोकमें घनपालका समय विक्रमकी पन्द्रहवीं शती माना जा सकता है । रचना
कवि धनपालद्वितीयने 'बाहुबलिचरिउ' की रचना की है, जिसका दूसरा नाम 'कामचरिउ' भी है। ग्रन्थ १८ संधियों में विभक्त है। इसमें प्रथम कामदेव बाहुबलिको कथा गुम्फित है। बाहुबली ऋषभदेवके पुत्र थे और सम्राट् भग्तके कनिष्ठ भ्राता | बाहुबली सुन्दर, उन्नत एवं बल-पौरुषसे सम्पन्न थे। वे इन्द्रि यजयी और उग्र तपस्वी भी थे। उन्होंने चक्रवर्ती भरतको जल, मल्ल और दृष्टि युद्धमें पराजित किया था। भरत इस पराजयसे बिक्षुब्ध हो गये और प्रतिशोध लेनेकी भावनासे उन्होंने अपने भाई पर सुदर्शनचक्र चलाया । किन्तु देवोपनीत अस्त्र वंशघातक नहीं होते, अतएव वह चक्र बहुबलिकी प्रदक्षिणा देकर लौट आया। इससे बाहर्बालके मनमें पश्चात्ता उत्पन्न हुआ | वे परिग्रह, पावभाव, अहंकार, राज्यसत्ता, न्याय-अन्याय, भाई-भाईका सम्बन्ध आदिके सम्बन्धमं विचार करने लगे। उन्होंने राज-त्यागका निश्चय कर लिया और वे दिगम्बरदीक्षा लेकर आत्म-साधना में प्रवृत्त हए। उन्होंने कठार तपश्चरण किया और स्वात्मोपलब्धि प्राप्त की ।
यह ग्रंथ काव्य और मानवीय भावनाओंसे आतिप्रोत है। कविने यथास्थान वस्तु-चित्र प्रस्तुतकर काव्यको सरस बनानेका प्रयास किया है । हम यहाँ विवाहके अनन्तर वर-वधूके मिलनका एक उदाहरण प्रस्तुतकर वाविवा काव्यत्वपर प्रकाश दालेंगे।
सोहइ कोइल-झुणि महुरसमए, सोहइ मणि पहु लद्ध जाए। सोइ मणिकणयालंकारिया, सोहइ सासय-सिरि सिद्ध जुया । सोहइ संपइ सम्माण जणं, साहइ जयलछो सहडु र । सोहइ साहा जलइरस वर्ण, सोहइ वाया सुपुरिस वयणं । जह सोहाइ एयहि वह कलिया, तह सोहइ कण्णा पर मिलिया ।
कि बहुणा वाया उन्भसए, कोरइ विवाहु सोमंजसए । ७५ । बाहुब लिंचरित वास्तवमें महाकाव्यक गणसि युबत्त है । कबिने इसे सभी प्रकारसे सरस और कवित्वपूर्ण बनाया है।
कवि हरिचन्द या जयमित्रहल फाथि हरिचन्द्र। अपनी गुरु-परम्पराका उल्लेख किया है। बताया है कि २१४ : तीर्थयार महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा