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मेहेस रच रिज
इस काव्य में जयकुमार और सुलोचनाकी कथा अंकित है। इस ग्रन्थमें कुल १३ सन्धिय ३०४ कड़वक और १२ संस्कृत पद्य हैं । यद्यपि इसमें मेधेश्वरकी कथा अंकित की गई है, पर कविने उसमें अपनी विशेषता भी प्रदर्शित की है। वह गंगा नदी में निमग्न हाथीपरसे सुलोचनाको जलमें गिरा देता है। आचार्य जिनसेन अपने महापुराण में सुलोचनासे केवल चीत्कार कराके ही गङ्गादेवी द्वारा हाथीका उद्धार करा देते हैं। पर महाकवि ग्धू इस प्रसंगको अत्यन्त मार्मिक बनाने के लिए सती-साध्वी नायिका सुलोचनाको करुण चीत्कार करते हुए मूच्छित रूपमें अंकित करते हैं। पश्चात् उसके सतीत्वकी उद्दाम व्यंजनाके हेतु उसे हाथीपर से गङ्गाके भयानक गर्तमें गिरा देते हैं । नायिकाको प्रार्थना एवं उसके पुण्यप्रभावसे गङ्गादेवो प्रत्यक्ष होती है और सुलोचनाका जय-जयकार करती हुई गङ्गातटपर निर्मित रत्नजटित प्रासादमें सिहासनपर उसे आरूढ़ कर देती है । कथानकका चरमोत्कर्ष इसी स्थानपर संपादित हो जाता है । कविने मेहेसरचरिउको पौराणिक काव्य बनाने का पूरा प्रयास किया है । सिरिबालचरि
श्रीपाल चरितकी दो बाराएँ उपलब्ध होती है । एक धारा दिगम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित है और दूसरी श्वेताम्बर सम्प्रदायमें। दोनों सम्प्रदायों की कथावस्तु में निम्नलिखित अन्तर है-
१. माता-पिता के नाम सम्वन्धी अन्तर |
२. श्रीपालकी राजगद्दी और रोग सम्बन्धी अन्तर ।
३. मांका साथ रहना तथा वैद्य सम्बन्धी अन्तर ।
४. मदनसुन्दरी - विवाह सम्बन्धी अन्तर ।
५. मदनादि कुमारियोंकी माता तथा कुमारियोंके नामोंमें अन्तर । ६. विवाह के बाद श्रीपाल भ्रमण में अन्तर ।
७. श्रीपालका माता एवं पत्नीसे सम्मेलनमें अन्तर ।
श्रीमालचरित एक पौराणिक चरित-काव्य है । कविने श्रीपाल और नयनासुन्दरीके आख्यानको लेकर सिद्धचक्रविधान के महत्त्वको अंकित किया है। यह विधान बड़ा ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है और उसके द्वारा कुष्ठ जैसे रोगोंको दूर किया जा सकता है। नयनासुन्दरी अपने पिताको निर्भीकतापूर्वक उत्तर देती हुई कहती है
१. मेहेसर० ७११६।१-१०-१० १
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