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बुद्धिका आहरण कर लेता है। कवि कहता है कि मैं सरस्वतोके वचनोंसे प्रतिबुद्ध होकर आनन्दित हो उठा और काव्य-रचनामें प्रवृत्त हो गया | कविकी . रचनाओंके प्रेरक अनेक श्रावक रहे हैं, जिससे कवि इतने विशाल-साहित्यका निर्माण कर सका है।
'पासणाचरिउ'में कविने २३वे तीर्थकर पार्श्वनाथकी कथा निबद्ध की है। यह ग्रन्थ डॉ.राजाराम जैन द्वारा सम्पादित होकर शोलापुर दोसी-ग्रन्धमालासे प्रकाशित है। यह कविका पौराणिक महाकाव्य है। कविने इसम पार्श्वनाथकी साधनाके अतिरिक्त उनके शौर्य, वीर्य, पराक्रम आदि गुणोंको भी उद्घाटित किया है। काव्यके संवाद रुचिकर हैं और उनसे पात्रोके चरित्रपर पूरा प्रकाश पड़ता है। रइधूकी समस्त कृतियोंमें यह रचना अधिक सरस और काव्यगुणोंसे युक्त है । कथावस्तु सात सन्धियोंमें विभक्त है ।
'णेमिणाहचरिउ' में २२वें तीर्थकर नेमिनाथका जीवन चर्णित है। इसकी कथावस्तु १४ सन्धियोंमें विभक्त है और ३०२ कड़बक हैं। इस पौराणिक महाकाव्य में भी रस, अलंकार आदिकी योजना हुई है। इसमें ऋषभदेव, और वर्द्धमानका भी कथन आया है। प्रसंगवश भगत चक्रवर्ती, भोगभूमि, कर्मभूमि, स्वाग, नरक, य, समुद्र, भरत, ऐरावतादि क्षेत्र, पटकुलाचल, गंगा, सिन्धु आदि नदियाँ, रत्नत्रय, पंचाणुव्रत, तीन गुणात, चार शिक्षाअत्त, अष्टमूलगुण, पद्रव्य एवं थावकाचार आदिका निरूपण किया गया है । भुनिधर्मके वर्णन-प्रसंगमें ५ समिति, ३ गुप्ति, १० धर्म द्वादश अनुप्रेक्षा, २२ परीषहजय और षडावश्यकका कथन आया है।' इसप्रकार यह काव्य दर्शन और पुराण तत्त्वकी दृष्टिसे भी समृद्ध है।
सम्मइजिणचरिउ'-इस काव्यमें अन्तिम तीर्थकर भगवान् महाचोरका जीवनचरित मुम्फित है। कविने दर्शन, ज्ञान और चारित्रको चर्चाके अनन्तर वस्तुवर्णनोंको भी सरस बनाया है। महावीर शंशव-कालमें प्रवेश करते हैं। माता-पिता स्नेहवश उन्हें विविध प्रकारके वस्त्राभूषण धारण कराते हैं। कवि इस मार्मिक प्रसंगका वर्णन करता हुआ लिखता है
सिरि-सेहरु णिरुवमु रयणु-जडिउ । कुडल-जुउ सरेणि सुरेण घडिउ । भालयलि-तिलउ गलि-कुसुममाल 1 कंकाह हत्थु अलिगण खल ॥ किकिणिहि-सद्द-मोहिय-कुरंग । कडि-मेहलडिकदेसहिँ अभंग || तह कट्टारू वि मणि छुरियवंतु । उरु-हार अद्धहारहिँ सहतु । गेवर-सज्जिय पायहिं पइट्ठ । अंगुलिय समुद्दादय गुणछ ।
-सम्मइ०-५/२३१५-९। १. मिगाहचरिउ १३।५। २०२ : वीथंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा