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रचनाएँ
महाकवि रड़धूने अकेले ही विपुल परिमाण में ग्रन्थोंकी रचना की है। इसे महाकवि न कहकर एक पुस्तकालय - रचयिता कहा जा सकता है ।
डॉ० राजाराम जेनने विभिन्न स्रोतोंके आधारपर अभी तक कविकी ३७ रचनाओं का अन्वेषण किया है 1
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१. मेहेसरचरिउ (अपरनाम आदिपुराण), २. मिणाहचरिउ (अपरनाम रिट्ठमिचरिउ ) ३. पासणाहचरिउ, ४ सम्मइजिणचरिउ, ५. तिसठ्ठिमहापुरिसचरिङ, ६. महापुराण, ७. बलह्द्दचरिउ, ८. हरिवंशपुराण ९. श्रीपालचरित १०. प्रद्युम्नचरित, ११. वृत्तसार, १२. कारणगुणषोडशी, १३. दशलक्षणजयमाला, १४. रत्नत्रयी, १५. षड्धर्मोपदेशमाला, १६ भविष्यदत्तचरित १७. करकंडुचरित १८. आत्मसम्बोधकाव्य १९ उपदेश रत्नमाला २०. जिमंधरचरित, २१. पुण्याश्रवकथा, २२. सम्यक्त्वगुणनिधानकाव्य, २३. सम्यग्गुणारोहणकाव्य, २४. षोडशकारणजयमाला, २५. बारह भावना (हिन्दी), २६ सम्बोधपंचाशिका, २७. धन्यकुमारचरित २८ सिद्धान्तार्थसार २९ बृहत्सद्धचक्रपूजा (संस्कृत), ३०. सम्यक्त्वभावना, ३१. जसहर चरिउ, ३२ जीणंधरचरित, ३३. कोमुइकहापबंधु, ३४. सुक्कोसलचरिउ, ३५. सुदंसणचरिउ, ३६. सिद्धचक्कमाह्य, ३७. अणथमउकहा ।
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कविको रचना करनेको प्रेरणा सरस्वतीसे प्राप्त हुई थी। कहा जाता है कि एक दिन कवि चिन्तित अवस्थामें रात्रिमें सोया । स्वप्न में सरस्वतीने दर्शन दिया और काव्य रचनेकी प्रेरणा दी । कविने लिखा है
सिविणंतरे दिट्ठ सुयदेवि सुपसण । आहालए तुज्झ हवं जाए सुपसण्ण ॥ परिहरहि मणचत करि भव्वु णिसु कब्वु । वलयहं मा डरहि भउ हरिउ भइ सव्व ॥ तो देविवयणेण पडिउवि साणंदु । तक्खणेण सयणाउ उठिउ जि गय-तंदु ॥
सम्मइ० - ११४४२-४ |
अर्थात् प्रमुदितमना सरस्वतीदेवीने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा कि में तुमपर प्रसन्न हूँ । मनकी समस्त चिन्ताएँ छोड़ हे भव्य ! तुम निरंतर काव्यरचना करते रहो । दुर्जनोंसे भय करनेकी आवश्यकता नहीं, क्यों कि भय सम्पूर्ण
१. रद्दषू साहित्यका आलोचनात्मक परिशीलन, पृष्ठ ४९ ।
काचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : २०१