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कविने लिखा है"एयभत्तु एक्विजि कल्लाणइ, पिहि णिव्वियडि अहव इग ठाणइ । तिहि आयंबिलु जिणु भणइ, चहि होइ उववासु गिहत्यहं । अवा सयलह खबणविहि, विणयचंदमुणि कहित समत्थहं ।
सिद्धि सुहकर सिद्धिपहु" इस काध्यमें २५ पद्य हैं ! एक-एक पगमें प्रत्येक तीर्थकरके कल्याणकको तिथियां बतलायी गई हैं। किसी-किसी पद्यमें दो-दो तीर्थंकरोंकी कल्याणकतिथियाँ हैं और कहीं दो-दो पद्योंमें एक ही तीर्थंकरके कल्याणकको तिथि है। भाषा शैली प्रौढ़ है। यहाँ उदाहरणार्थ एक पद्य प्रस्तुत किया जाता है
पिम्मल दुइजहि सुविहि सु केवलु
मिहि छलिहि गब्भु सुमंगलु । अरजिण-णाणु दुवारसिहि संभव-संभउ पुण्णिम-धासरि णव कल्लाणहं अट्ठ दिण इय विहिं पहिं कत्तिय-अवसरि ।
महाकवि दामोदर महाकवि दामोदरका वंश मेउत्तय था | इनके पिताका नाम मल्ह था, जिन्होंने रल्हका चरित लिखा था। ये सलखनपुरके वासी थे। इनके ज्येष्ठ भ्राताका नाम जिनदेव था। कवि मालवाका रहनेवाला था। यह दामोदर 'उक्ति-व्यक्ति-विवृत्ति' के रचयितासे भिन्न है । पुष्पिकावाक्यमें कविने निम्न प्रकार नामांकन किया है___"इय मिणाहरिए महामुणिकमलभद्दपच्चक्खे महाकइ-कणिठ्ठ-दामोयरचिरइए पंडियरामयंद-आएसिए महाकव्वे मल्ह-सुअ-णग्गएव-आयण्णिए लेमि. णिब्वाणगमणं पंचमो परिच्छेओ सम्मत्तो ।।१४५।।"
इससे स्पष्ट है कि कवि दामोदरने महामुनि कमलभद्रके प्रत्यक्षमें पं० रामचन्द्रके आदेशसे इस ग्रन्थकी रचना की। कविके पिताका नाम मल्ह् था । उसने अपने वंशका परिचय भी निम्न प्रकार प्रस्तुत किया है
भेउत्तयवंश-उज्जोण-करणु, जे होण-दीण-दुइ-रोय-हरणु । मल्हइ-णंदणु गुण गणपवित्तु, तेणि भणिउ दल्हविरयहि चरित्तु ।
मई सलखणपुरि-णिवसंतएण, किउ भब्बु कब्बु गुरु-आयरेण । इस बंश-परिचयसे इतना ही ज्ञात होता है कि कवि सलखनपुरका निवासी था और उसके पिताका नाम मल्ह या मल्हण और बड़े भाईका नाम जिनदेव था।
आचर्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : १९३
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