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कविपरमेश्वरनिगदितगद्यकथामातृकं पुरोश्चरितम् ।
सकलच्छन्दोलकतिलक्ष्यं सूक्ष्मार्थ गूढपदरचनम् ।। अर्थात् परमेश्वर कबिके द्वारा कथित गद्यवाव्य जिसका आधार है, जो समस्त छन्दों और अलंकारोंका उदाहरण हैं, जिसमें मूक्ष्म अर्थ और गूढ पदोंकी रचना है, जिसने अन्य काव्योंको तिरस्कृत कर दिया है, जो श्रवण करने योग्य है, मिध्याकवियोंके दर्पको खण्डित करनेवाला है और अत्यन्त सुन्दर है, ऐसा यह महापुराण है।
आचार्य जिनसेनने भी कवि परमेश्वरका आदरपूर्वक स्मरण किया है। उन्होंने उनके ग्रन्थका नाम 'वागर्थसंग्रह' बतलाया है
स पूज्य: कविभिलोंके कवीनां परमेश्वरः ।
वागर्थसंग्रहं कृत्स्नं पुराणं यः समग्रहीत' । उपर्युक्त उद्धरणोंसे स्पष्ट है कि कवि परमेश्वर अत्यन्त प्रसिद्ध और प्रामाणिक पुराणरचयिता हैं। उन्होंने त्रिषष्टिशलाकापुरुषोंके सम्बन्धमें एक पुराण लिखा था, जो गुणभद्रके कथनानुसार गद्यकाव्य है । आचार्य जिनसेनने आदिपुराणकी रचनामें कवि परमेश्वरके इस पुराणग्रन्थका उपयोग किया है। जिनसेनकी दृष्टि में इस महा नाम 'नामर्थगंह' का नागडयने भी अपने चामुण्डरायपुराणके लिखने में कदि परमेश्वरके पुराणग्रन्थका उपयोग किया है । अत्तएव यह निश्चित है कि कवि परमेश्वरका उक्त पुराण जिनसेनके पूर्व अर्थात् ई० सन् ८३७ के पहले ही प्रसिद्ध हो चुका था। कविपरमेश्वरका यह ग्रन्थ सम्भवतः चम्पूशैलीमें लिखा गया है। यतः चामुण्डरायपुराणमें इसके पद्म उपलब्ध होते हैं और गुणभद्रने इसे गद्यकाव्य कहा है। इसकी प्रसिद्धिको देखते हुए लगता है कि इस ग्रन्थकी रचना समन्तभद्र और पूज्यपादके समकालीन अथवा कुछ समय पश्चात् हुई होगी। ___डॉ० ए० एन० उपाध्येने 'चामुण्डरायपुराण' में कविपरमेश्वरके नामसे उद्धृत पद्योंको उपस्थित कर कविको प्रतिभा और पाण्डित्यपर प्रकाश डाला है। हम यहाँ उन्हीं पद्यों से कतिपय पद्य उद्धृत करते हैंकविपरमेश्वरवृत्त ।
रामत्वं गणधृत्वमप्यभिमतं लोकान्तिकत्वं तथा
षट्खण्डप्रभुता सुखानुभवनं सर्वार्थसिद्धयादिषु । १. उत्तरपुराण, प्रशस्ति, पद्य १७ । २. आदिपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण ११६०।
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ५