________________
किया गया है । कविने इस ग्रंथके बन्धगठनके सम्बन्धमें लिखा है
नाणाछंद-बंध-नीरंधहिं, पासचरिउ एयारह-संघिहिं । पउरच्छहि सुवण्णरस पउिहिं, दोन्निसयाई दोनि पद्धडियहि । चउवम्ग-फलहो पावण-पंथहो, सई चलवीस होंति फूड गंथहो। जो नरु देइ लिहाविद्ध दाणई, सहो संपज्जइ पंचई नाणई । जो पुणु बच्चइ सुलिय-भासई, तहो पुण्णेण फलहिं सव्यासई । जो पयउत्थु करे वि पजइ, सौ सग्गारा -सुर भुजः।।
ओ आयन्नइ चिरु नियमिय मणु, सो इह लोइ लोइ सिरि भायणु । नाना प्रकारके छन्दों द्वारा इस ग्रंथको रचा गया है। नवरसोंसे युक्त चतुवर्गके फलको देने वाले मृदुल और ललित अक्षरोंसे युक्त नवीन अर्थको देने वाला यह ग्रंथ है। कविने संकेत द्वारा काव्यके गुणोपर प्रकाश डाला है ।
उदयचन्द्र उदयचन्द्रने अपभ्रश-भाषामें 'सुअंधदहमीकहा' ।सुगंधदशमी कथा) ग्रंथकी रचना की है। कविने इस ग्रंथके अन्तमें अपना संक्षिप्त परिचय दिया है
इय सुअदिक्खहि कहिय सवित्थर, मई गावित्ति सुणाइय मणहर । णियकूलणह-उज्जोइय-चंदई। सज्जण-मण-कय-णयणाणदई। भवियण-कण्णग-मणहर भासई । जसहर-णायकुमारहो वायई । बुयण सुयणहं विणउ करतई। अइसुसील-देमइयहि कंतई।
एमहि पुणु वि सुपास-जिणेसर। कवि कम्मक्खउ मह परमेसर । इन पंक्तियोंसे स्पष्ट है कि कविका नाम उदयचन्द्र था और उसकी पत्लीका देवमति ।
श्री डॉ. हीरालालजी जैनने उदयचन्द्रके सम्बन्धमें प्रकाश डालते हुए लिखा है कि सुगन्ध-दशमी ग्रंथके कर्ता वे ही उदयचन्द्र हैं, जिनका उल्लेख विनयचन्द्र मुनिने अपने गुरुके रूपमें किया है | "
निझरपंचमीकहा' में विनयबन्दने अपनेको माथुरसंघका मृनि बताया है। और इस प्रन्यकी रचना त्रिभुवनगिरिको तलहटीमें की गई बतलायो है । लिखा है
पणविवि पंच महागुरु सारद परिवि मणि । उदयचंदु गुरु सुमरिवि वंदिय बालमुणि ।। विणयचंदु फलु अक्खइ णिझरपंचमिहि । णिसुणहु धम्मकहाणउ कहिन जिणागमहि ।
१८४ : तोयंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा